थांरौ साथो घणो सुहावै सा…

15.8.13

रंग-बिरंगी लगा' पांखड़्यां बुगला बणग्या मोर !




कैवण नैं आज स्वतंत्रता दिवस है । 
...पण हियै हाथ धरर सोचो – आपां साची आज़ाद हां कंई ? कित्ता?? साथ्यां ! अजे आज़ादी अधूरी है !
पूरी स्वतंत्रता अर सुतंत्रता खातर संघरष करतो रैवणो है !
म्हारौ एक पुराणो गीत आपरी निजर है सा  
जोर लगालै जोर !
भ्रिष्टाचार अठै छायो ज्यूं गगन घटा घनघोर !
दानवता री दळदळ पसरी , जिण रौ ओर नं छोर !
एकमेक संगी-समधी ज्यूं हुया आदमी-ढोर !
बळती बारूंमास ; लूंटग्यो कुण सावणिया लोर ?

निरवाळो मत बैठ भायला ! नीं कर मन कमजोर !
जोर लगालै जोर !

सजबा लागा गमलां मांहीं आक कैक्टस थोर !
रंग-बिरंगी लगा' पांखड़्यां बुगला बणग्या मोर !
धरमी पिंडा-मुल्ला : लम्पट ढोंगी ठग्गू चोर !
लीडर : मुज़रिम गुंडा तस्कर ख़ूनी रिश्वतखोर !

जनता री सेवा में पग-पग बैठा टुक्कड़खोर !
  जोर लगालै जोर !

नित-नित लावै आंधो सूरज मुरझायोड़ी भोर !
भलां  'र भोळां रै नैणां री डब-डब भीजै कोर !
साचां री नीं हुवै सुणाई ; …मरो भलां रो-रो' !
हुयो विधाता बेबस , काची कठपुतळ्यां री डोर !

रे सूत्योड़ां ! जागो , राजिंद जगा रह्'यो झकझोर !
 जोर लगालै जोर !

-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

6 टिप्‍पणियां:

Manish Khedawat ने कहा…

जब भी इण ब्लॉग पर आऊ हूँ , मन प्रसन्न हो जावे हैं ! बहुत कम लोग हैं जो अपाणि मायड भाषा में लिखे हैं !!

बहुत बढ़िया !!

संसद एक कोठा, जहाँ नाचती हैं भगत सिंह की दुल्हन

वाणी गीत ने कहा…

हिय होसी तो सोचसी :(
घनो चोखो लिख्या !

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बहुत सुंदर। वाह!

BrijmohanShrivastava ने कहा…

दीपावली की बहुत बहुत बधाई — शुभकामनाऐं

संतोष पाण्डेय ने कहा…

paila thara nam likhula kavita bahut achchhi lagi.

गोपाल मानसिंगका ने कहा…

बेहद शानदार रचना....... बधाई राजेंद्र जी !