कैवण नैं आज स्वतंत्रता दिवस है ।
...पण हियै हाथ धर’र सोचो – आपां साची आज़ाद
हां कंई ? कित्ता’क ?? साथ्’यां ! अजे आज़ादी अधूरी है !
पूरी स्वतंत्रता अर सुतंत्रता खातर संघरष करतो रैवणो है !
पूरी स्वतंत्रता अर सुतंत्रता खातर संघरष करतो रैवणो है !
म्हारौ
एक पुराणो गीत आपरी निजर है सा
जोर लगालै जोर !
भ्रिष्टाचार अठै छायो ज्यूं गगन घटा घनघोर !
दानवता री दळदळ पसरी , जिण रौ ओर नं छोर !
एकमेक संगी-समधी ज्यूं हुया आदमी-ढोर !
बळती बारूंमास ; लूंटग्यो कुण सावणिया लोर ?
निरवाळो मत बैठ भायला ! नीं कर मन कमजोर !
जोर लगालै जोर !
सजबा लागा गमलां मांहीं आक कैक्टस थोर !
रंग-बिरंगी लगा' पांखड़्यां बुगला बणग्या मोर !
धरमी पिंडा-मुल्ला : लम्पट ढोंगी ठग्गू चोर !
लीडर : मुज़रिम गुंडा तस्कर ख़ूनी रिश्वतखोर !
जनता री सेवा में पग-पग बैठा टुक्कड़खोर !
जोर लगालै जोर !
नित-नित लावै आंधो सूरज मुरझायोड़ी भोर !
भलां 'र भोळां रै नैणां री डब-डब भीजै कोर !
साचां री नीं हुवै सुणाई ; …मरो भलां रो-रो'र !
हुयो विधाता बेबस , काची कठपुतळ्यां री डोर !
रे सूत्योड़ां ! जागो , राजिंद जगा रह्'यो झकझोर !
जोर लगालै जोर !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
भ्रिष्टाचार अठै छायो ज्यूं गगन घटा घनघोर !
दानवता री दळदळ पसरी , जिण रौ ओर नं छोर !
एकमेक संगी-समधी ज्यूं हुया आदमी-ढोर !
बळती बारूंमास ; लूंटग्यो कुण सावणिया लोर ?
निरवाळो मत बैठ भायला ! नीं कर मन कमजोर !
जोर लगालै जोर !
सजबा लागा गमलां मांहीं आक कैक्टस थोर !
रंग-बिरंगी लगा' पांखड़्यां बुगला बणग्या मोर !
धरमी पिंडा-मुल्ला : लम्पट ढोंगी ठग्गू चोर !
लीडर : मुज़रिम गुंडा तस्कर ख़ूनी रिश्वतखोर !
जनता री सेवा में पग-पग बैठा टुक्कड़खोर !
जोर लगालै जोर !
नित-नित लावै आंधो सूरज मुरझायोड़ी भोर !
भलां 'र भोळां रै नैणां री डब-डब भीजै कोर !
साचां री नीं हुवै सुणाई ; …मरो भलां रो-रो'र !
हुयो विधाता बेबस , काची कठपुतळ्यां री डोर !
रे सूत्योड़ां ! जागो , राजिंद जगा रह्'यो झकझोर !
जोर लगालै जोर !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright
by : Rajendra Swarnkar
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वंदे मातरम् !
वंदे मातरम् !
वंदे मातरम् !
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अठै भी पधारजो सा
न हिजड़ों को बिठाते हम अगर दिल्ली की गद्दी पर न चारों ओर बहते ख़ून की ये नालियां होतीं
वंदे मातरम् !
वंदे मातरम् !
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अठै भी पधारजो सा
न हिजड़ों को बिठाते हम अगर दिल्ली की गद्दी पर न चारों ओर बहते ख़ून की ये नालियां होतीं
7 टिप्पणियां:
जब भी इण ब्लॉग पर आऊ हूँ , मन प्रसन्न हो जावे हैं ! बहुत कम लोग हैं जो अपाणि मायड भाषा में लिखे हैं !!
बहुत बढ़िया !!
संसद एक कोठा, जहाँ नाचती हैं भगत सिंह की दुल्हन
हिय होसी तो सोचसी :(
घनो चोखो लिख्या !
बहुत सुंदर। वाह!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
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दीपावली की बहुत बहुत बधाई — शुभकामनाऐं
paila thara nam likhula kavita bahut achchhi lagi.
बेहद शानदार रचना....... बधाई राजेंद्र जी !
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