थांरौ साथो घणो सुहावै सा…

24.11.13

थां'रौ तन मदिरालय लिखसूं मन नैं तीरथधाम

नाम लिखूंला
पैलां थां'रौ नाम लिखूंला
ओजूं मुळक' सिलाम लिखूंला
म्हारै मन री सैंग विगत म्हैं
काळजियै नैं थाम' लिखूंला
रूं-रूं नस-नस थां'री ओळ्यूं
मोत्यां-मूंगै दाम लिखूंला
थां'रौ तन मदिरालय लिखसूं
मन नैं तीरथधाम लिखूंला
छेकड़ दो ओळ्यां मांडूंला
ख़ास ज़रूरी काम लिखूंला
लिखसूं थां'नैं भोळी राधा
ख़ुद नैं छळियो श्याम लिखूंला
नीं स्रिष्टी में लाधै राजिंद
प्रीत इस्यी सरनाम लिखूंला
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
भावार्थ 
पहले आपका नाम लिखूंगा
फिर मुस्कुरा कर सलाम लिखूंगा ।
मेरे मन की सारी बातें कलेजे को थाम कर लिखूंगा ।
आपकी स्मृतियां रोम-रोम नस-नस में
मूंगे और मोतियों के दाम लिखूंगा ।
आपकी देह को मदिरालय और मन को तीर्थधाम लिखूंगा ।
अंततः दो विशेष पंक्तियों में अत्यावश्यक कार्य लिखूंगा ।
आपको भोली राधा और स्वयं को छलिया कृष्ण लिखूंगा ।
पूरी सृष्टि में न मिले ऐसी स्वनामधन्य प्रीत लिखूंगा ।

आस करूं म्हारा राजस्थानी बैन-भायां सागै हिंदी भाषी मित्र भी ग़ज़ल रौ आनंद लिया है
आपरी टिप्पण्
यां सूं ठाह पड़सी 

जै रामजी री सा