एक ग़ज़ल आप री निजर है सा
ऐ आछा बदळाव हुया
भाव-बिहूण सुभाव हुया
बदळां पाणी-पौन कठै
शहरां जैड़ा गांव हुया
किणरौ के गुमरेज करां
समदर सुकड़’ तळाव हुया
बण बैठ्या भाठा भगवान
इण मिस ऊंचा भाव हुया
इक काळजियै में धुखता
सौ नीं लाख अळाव हुया
राजिंद केई पंसेरी
परिवरतन में पाव हुया
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
शब्दार्थ
मेरे हिंदी-भाषा-भाषी मित्रों के लिए
ऐ - ये * आछा - अच्छे
बदळाव - बदलाव/परिवर्तन * हुया -
हुए
भाव-बिहूण - भाव-विहीन * सुभाव - स्वभाव
बदळां - बदलें * पाणी-पौन - पानी-हवा
कठै - कहां * जैड़ा -
जैसे
किणरौ - किसका * के -
क्या
गुमरेज - गर्व / घमंड * सुकड़’ - सिकुड़ कर
इण मिस - इस बहाने * केई - कई / अनेक
************************************************
मोकळी मंगळकामनावां !