थांरौ साथो घणो सुहावै सा…

30.12.11

एकेला उठावो थे जवानी रौ औ भार क्यूं : कवित्त

रामराम सा !
इण कड़कड़ा'ती ठंड-सर्दी रै मौसम में 
गरमागरम दाळ रौ सीरो अर बड़ा-पकौड़ा अरोगता थका 
औ मनहरण कवित्त बांचसो तो ठंड कीं तो कम लखासी 


एकेला उठावो थे जवानी रौ औ भार क्यूं

काजळिया-राता-लीला नैण लागै आछा गोरी ,
बणावो इंयां नैं घड़ी-घड़ी तलवार क्यूं ?
चावै बां'रै खून सूं मंडावो मांडणा ; मनावो
नैण-बाण मार' नित तीज क्यूं तिंवार क्यूं ?
प्रीत रा पुजारियां रै , दरस-भिखारियां रै
काळजै चलावो निज रूप री कटार क्यूं ?
राजिंद है दास थांरौ , आपे ई संभाळ लेसी
एकेला उठावो थे जवानी रौ औ भार क्यूं ?
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
(फोटू गूगल सूं साभार)
नुंवै साल 2012 री मोकळी मंगळकामनावां मानज्यो सा !