थांरौ साथो घणो सुहावै सा…

31.12.13

प्रीत में म्हारी जीत सांवरा

सांवरा
 थैंस्यूं म्हारी प्रीत सांवरा
तूं म्हारौ मनमीत सांवरा
 आव, सुणाव, मुळकतो मीठो
मुरली रौ संगीत  सांवरा
 संसार्'यां रै सींव सांस री
उमर रयी है बीत सांवरा
 प्रीत लेय' पाछी नीं दे'णी
किस्यी नुंवी आ रीत सांवरा
 था'रै-म्हारै मनां बिचाळै
है न हुवैली भींत सांवरा
 सुणी ; निभावै हर जुग में तूं
भगत-वछळता-नीत सांवरा
 करी ; सूर मीरां री, इब कर
प्रीत में म्हारी जीत सांवरा
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
बरस २०१३ रै छेकड़लै नाकै पर आ रचना म्हारै इण ब्लॉग पर बांचर आपनैं आछो लाग्यो हुवैला
अंगरेज़ी नुंवै साल २०१४
री
बधाई अर मंगळकामनावां 

24.11.13

थां'रौ तन मदिरालय लिखसूं मन नैं तीरथधाम

नाम लिखूंला
पैलां थां'रौ नाम लिखूंला
ओजूं मुळक' सिलाम लिखूंला
म्हारै मन री सैंग विगत म्हैं
काळजियै नैं थाम' लिखूंला
रूं-रूं नस-नस थां'री ओळ्यूं
मोत्यां-मूंगै दाम लिखूंला
थां'रौ तन मदिरालय लिखसूं
मन नैं तीरथधाम लिखूंला
छेकड़ दो ओळ्यां मांडूंला
ख़ास ज़रूरी काम लिखूंला
लिखसूं थां'नैं भोळी राधा
ख़ुद नैं छळियो श्याम लिखूंला
नीं स्रिष्टी में लाधै राजिंद
प्रीत इस्यी सरनाम लिखूंला
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
भावार्थ 
पहले आपका नाम लिखूंगा
फिर मुस्कुरा कर सलाम लिखूंगा ।
मेरे मन की सारी बातें कलेजे को थाम कर लिखूंगा ।
आपकी स्मृतियां रोम-रोम नस-नस में
मूंगे और मोतियों के दाम लिखूंगा ।
आपकी देह को मदिरालय और मन को तीर्थधाम लिखूंगा ।
अंततः दो विशेष पंक्तियों में अत्यावश्यक कार्य लिखूंगा ।
आपको भोली राधा और स्वयं को छलिया कृष्ण लिखूंगा ।
पूरी सृष्टि में न मिले ऐसी स्वनामधन्य प्रीत लिखूंगा ।

आस करूं म्हारा राजस्थानी बैन-भायां सागै हिंदी भाषी मित्र भी ग़ज़ल रौ आनंद लिया है
आपरी टिप्पण्
यां सूं ठाह पड़सी 

जै रामजी री सा

15.8.13

रंग-बिरंगी लगा' पांखड़्यां बुगला बणग्या मोर !




कैवण नैं आज स्वतंत्रता दिवस है । 
...पण हियै हाथ धरर सोचो – आपां साची आज़ाद हां कंई ? कित्ता?? साथ्यां ! अजे आज़ादी अधूरी है !
पूरी स्वतंत्रता अर सुतंत्रता खातर संघरष करतो रैवणो है !
म्हारौ एक पुराणो गीत आपरी निजर है सा  
जोर लगालै जोर !
भ्रिष्टाचार अठै छायो ज्यूं गगन घटा घनघोर !
दानवता री दळदळ पसरी , जिण रौ ओर नं छोर !
एकमेक संगी-समधी ज्यूं हुया आदमी-ढोर !
बळती बारूंमास ; लूंटग्यो कुण सावणिया लोर ?

निरवाळो मत बैठ भायला ! नीं कर मन कमजोर !
जोर लगालै जोर !

सजबा लागा गमलां मांहीं आक कैक्टस थोर !
रंग-बिरंगी लगा' पांखड़्यां बुगला बणग्या मोर !
धरमी पिंडा-मुल्ला : लम्पट ढोंगी ठग्गू चोर !
लीडर : मुज़रिम गुंडा तस्कर ख़ूनी रिश्वतखोर !

जनता री सेवा में पग-पग बैठा टुक्कड़खोर !
  जोर लगालै जोर !

नित-नित लावै आंधो सूरज मुरझायोड़ी भोर !
भलां  'र भोळां रै नैणां री डब-डब भीजै कोर !
साचां री नीं हुवै सुणाई ; …मरो भलां रो-रो' !
हुयो विधाता बेबस , काची कठपुतळ्यां री डोर !

रे सूत्योड़ां ! जागो , राजिंद जगा रह्'यो झकझोर !
 जोर लगालै जोर !

-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

22.7.13

अणहद-नाद सुणीजै घट


श्री गुरुवे नमः
जयरामजी री सा !
गुरुपूनम री आप सबनैं मंगळकामनावां !

सगळां पर गुरुजनां री आशीष बणी रैवै   
आओ , इण मौकै म्हारी आ रचना बांचो अर सुणो
श्री गुरुवे नमः

जद उमगै उर ज्ञान-पिपासा !
बिन दीवटियां होय उजासा !

निज कळमष हाथां प्रक्षाळ्यां'
घट झड़ बरसै बिन चौमासा !

नाश वासना होवै सगळी ,
फीसै पाणी मांय पताशा !

ब्रह्म-जीव , जड़-चेतन , अपरा-
परा विभंजै खेल-तमाशा !

भेद मिटै अद्वैत-द्वैत रौ ,
सुलटा ही सुलटा सै पासा !

थित-प्रगळभ नैं मिळै ; निराशा 
मांय अलौकिक-ऊंडी आशा !

अणहद-नाद सुणीजै घट ; तद 
किसड़ा ढोल नगाड़ा ताशा ?

कीं सांसा  नीं  संतोष्यां रै ,
सैंठा भरिया रैवै कांसा !

मिळ जावै सतगुरु धन राजिंद
कट जावै कळि-भव-जम-पाशा !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
 ©copyright by : Rajendra Swarnkar

अठै सुणो


लारला केई महीना अबखायां सूं भर्'या हा । 
नेट री समस्या , ब्लॉग गायब होणै री समस्या , पीसी में खराबी , थोक में कमेंट ई डीलेट हुयग्या । हारी-बेमारी अर एढा-टांकड़ा , यात्रा-बा'रवास , रिश्तेदारी-समाजू कामां में व्यस्तता आदि । आप सब म्हनैं याद करता रै'या ...आभार ! म्हनैं भी आपरी घणी ओळ्यूं आ'ती रैयी
आस करूं , अबै स्सौ कीं ठीक अर माफिक रैसी ।
नुंवा साथीड़ां रौ हिवड़ै सूं स्वागत !
जूना साथीं‌ड़ां रै सनेह खातर मोकळो आभार !

मिलसां बैगा ई
रामराम सा

***अठै ई पधारजो सा***

21.2.13

इमरत वाणी बोल ! राजस्थानी बोल !



आज २१फरवरी
विश्व मातृ भाषा दिवस 
रै अवसर पर एक गीत
राजस्थानी बोल !
अंजस वाणी बोल !
कीरत वाणी बोल !
इमरत वाणी बोल !
राजस्थानी बोल !
करणी माता रामदेवजी तेजोजी गोगोजी
धन धन पाबूजी जसनाथजी पीपाजी जाम्भोजी
बोलग्या बै खांतीला बोल
थरपग्या लाखीणा निज मोल
भोळा, सत री वाणी बोल !
राजस्थानी बोल !!
मीरां बोली आ बोली अर अमर हुयां हरखावै
उण रै वचनां री गंगा ओजूं लग रस छळकावै
तूं भी हिरदै नैं खंखोळ
खोलदै खीला जड़ी पिरोळ
स्याणा, सुरसत वाणी बोल !
राजस्थानी बोल !!
गूंज्या पृथ्वीराज जणै धूज्या थर थर काफरिया
पड़गूंजां सूं घबरावै ओजूं घाती कायरिया
रचाजा ऐड़ी किरत किलोळ
बजाजा धमकै जंगी ढोल
सूरा, गरबी वाणी बोल !
राजस्थानी बोल !!
गोरा बादळ अमरसिंघ, सिंघां नैं मात करणिया
पदमण पन्ना हाड़ी राणी भामा-सा जस धणिया
बिगाड़्या बै बैरयां रा डोळ
सिधारया इण माटी जस घोळ
लूंठा, पत री वाणी बोल !
राजस्थानी बोल !!
बप्पा रावळ सांगा कुम्भा दुर्गादास हमीर
जैमल फत्ता महाराणा प्रताप सरीखा वीर
मात आ जाम्या रतन अमोल
अमी प्यायो वाणी हींडोळ
सपूता, सागण वाणी बोल !
राजस्थानी बोल !!
ऊजळी जेठो, कोडमदे सादुल अर खींवो आभळ
महिंदर मूमल, ढोलो मरवण ... प्रीत पगी रस बंतळ
राग रस रंग रुणझुण रिमझोळ
उमगिया अथ आखर अणमोल
रंगीला, मीठी वाणी बोल !
राजस्थानी बोल !!
सती जती केई गुणी सूर वाणी रै पुन्न प्रगटिया
भूपत नरपत लखपत सुगरा रजथानी केवटिया
करै राजिंद रौ हियो हबोळ
प्रीत नैं पालणियै मत तोल
सांईणा, सखरी वाणी बोल !
राजस्थानी बोल !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

सुणो सा औ गीत म्हारी धुन अर म्हारी आवाज़ में  

31.1.13

दो हरिगीतिका छंद

आज दो हरिगीतिका छंद बांचो सा

बणग्यो अमीविष प्रीत कारणप्रीत मेड़तणी करी !
प्रहलाद-बळ हरि आपनैड़ी आवती मिरतू डरी !
हरि-प्रीत सूं पत लाज द्रोपत री झरी नींनीं क्षरी !
राजिंद री अरदास सायब प्रीत थे करज्यो खरी !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
भावार्थ
प्रेम तो मेड़ता वाली मीरा ने कियाजिसकी प्रीति के कारण विष भी अमृत बन गया ।
प्रीति के कारण ही भगवान स्वयं बल-संबल बन गए तो मृत्यु भी प्रह्लाद के समीप आने से डरती रही ।
परमात्मा से प्रीति के पुण्य से ही द्रोपदी की प्रतिष्ठा और लज्जा क्षत-आहत अथवा भंग नहीं हुई ।
हे सुजन ! राजेन्द्र की आपसे प्रार्थना है कि आप प्रीत करें तो सच्ची प्रीत करें
 

बिन प्रीत बस्ती सून : पाणी मांय तड़फै माछळ्यां !
थे प्रीत-धूणो ताप’ रोही मांय गावो रागळ्यां !
इण प्रीत रै परभाव बणसी सैंग कांटां सूं कळ्यां !
घर ज्यूं पछै लागै परायी स्सै गुवाड़्यांस्सै गळ्यां !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
भावार्थ
प्रेम  हो तो बस्ती भी सुनसान प्रतीत होती है  बिना प्रेम पानी में भी मछली प्यासी तड़पती रहती है ।
आप
 प्रीत के धूने की आंच तपने के बाद , हर सुख सुविधा से वंचित निर्जन रोही में भी मस्ती में झूमते-गाते रहते हैं 
प्रेम
 के प्रभाव से सारे कांटे कलियां बन जाते हैं 
मन
 में प्रेम-भाव हो , तो  पराई गलियां-मुहल्ले , सारा संसार ही अपना घर लगने लगता है 

हरिगीतिका छंद रै बारे में
हरिगीतिका छंद एक मात्रिक सम छंद है 
औ छंद कुल चार
 चरणां/पंक्तियां में पूरो हुवै ।
च्यारूं चरणां में १६+१२=२८ मात्रा
 हुवै ।
१६वीं मात्रा पर यति / ठहराव / बिसांई रौ नियम है ।
हर दो पंक्तियां में तुक मिलणी जरूरी है
,
च्यारूं चरणां/पंक्तियां में तुक मिलै तो घणी फूठरी बात !
हर
  चरण रै अंत में लघु गुरु (१२) जरूरी है ।
भारतीय काव्य शास्त्र रै हर बीजा मात्रिक छंदां ज्यूं ही इण छंद में भी उर्दू/फ़ारसी रा छंदां ज्यूं हर्फ़/अक्षर/वर्ण री मात्रा कम-बेसी करणी वर्जित है ।
इण छंद री लय/राग और बेसी इंयां समझी जा सकै
जयरामजी, जयरामजीजय = १६
रामजी, जयरामजी = १२
 गागागागा-लल =१६
 गागाल-ल-गागा = १२
१+१+२+१+२
१+१+२+१+२+१+१ = १६
२+१+२
१+१+२+१+२ = १२
 या इंयां
 श्रीरामजीश्रीरामजीश्री = १६
 रामजीश्रीरामजी = १२
 गा-गा-ल-गा,  गा-गा-ल-गा-गा = १६
  गा-ल-गागा-गा-ल-गा = १२
२+२+१+२
२+२+१+२+२ = १६
२+१+२२+२+१+२ = १२

HeartsHeartsHearts
साथ्यां !
आप जे इण छंद बाबत या बीजै किणी छंद बाबत
कोई बात म्हनैं पूछणी चावो तो स्वागत है...
बताणी चावो तो सवायो स्वागत है ।
ठोस सिरजण पेटै कीं बंतळ तो हुवै...

मिलसां बैगा ई ...
मोकळी मंगळकामनावां !