थांरौ साथो घणो सुहावै सा…

12.12.12

बा मंज़ल हेलो पाड़ै

ल्यो सा एक ग़ज़ल
म्हारी पोथी रूई मांयीं सूई मांय सूं
  
यूं कांईं जी हारो हो
क्यूं मनड़ै नैं मारो हो
क्यूं बैर्यां रा काळजिया
मुंह लटकायां ठारो हो
देखो मुळकै चांदड़लो
किण नैं आप निहारो हो
बा मंज़ल हेलो पाड़ै
किण दिश आप सिधारो हो
समदर मरुथळ स्सै लांघ्या
थे इब कांईं धारो हो
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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भावार्थ
( मेरे हिंदीभाषी मित्रों के लिए )
ऐसे क्या जी (हिम्मत ) हार  रहे हो ?
क्यों मन को मार रहे हो ?
मुंह पर उदासी ला’कर
क्यों दुश्मनों के कलेजों को ठंडक पहुंचा रहे हो ?
देखो , चंद्रमा मुस्कुरा रहा है
…तुम किसे निरख रहे हो ?
वह मंज़िल पुकार रही है ,
तुम किस दिशा में जा रहे हो ?
समुद्र-रेग़िस्तान सब लांघ चुके
…अब तुम्हारे लिए क्या असंभव है ?
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…तो साथीड़ां ! विदा लेवण सूं पैलां
अंग्रेजी नूंवै बरस 2013 री मंगळकामनावां !
मिलसां भळै
जय रामजी री सा

9.11.12

दीयाळी रा दिवटियां ! थां’री के औकात ?

रामराम सा !
धनतेरस , रूपचौदस , दीयाळी , गोरधन पूजन , भाईबीज
री मोकळी
शुभकामनावां ! मंगळकामनावां ! 

    
लिछमी नित आशीष दै , गणपति दै वरदान !
सुरसत-किरपा सूं बधै सदा आपरौ मान!!
 
दीयाळी हरख रौ उच्छब अर आणंद रौ तिंवार है 
पण संसार में सगळा जणा बडै भाग वाळा कोनीं हुवै
ऐ दूहा निरधन अर कमजोरां री दीठ सूं कह्योड़ा है

मूंघाई छाती चढी , ऊपर काळ-कराळ !
साम्हीं दीयाळी खड़ी ; सांवरियो रिछपाळ !! 
 
फेर दियाळी आयगी , करै दीनियो सोच !
किनको हाथां मांयलो , डगमग खावै गोच !!
 
जठै टंक रौ पीसतां’ रूध्या रैवै हाथ !
उछब दियाळी रौ बठै कैड़ो लिछमीनाथ ?!
 
एक मजूर्’यां नीं ; भळै मूंघाई विकराळ !
दीयाळी नैं जोर के ? …आवै सालूं-साल !!
 
कळझळ करतां जुग हुया , गया झुळकतां साल !
दीयाळी करसी किस्यी अबकी म्हांनै न्याल ?!
 
दिन-हफ्ता रो-रो’ कटै , जाय झींखतां साल !
दीयाळ्यां-होळ्यां करै के ठनठन गोपाळ ?!
 
मूंघा पाणी-बीजळी , रोटी-दाळ जंवार !
दीयाळी ! था’री किंयां करां मान-मनवार ?!
 
टाबरियां ; बागा नुंवा , टापरियै रै रंग !
दीयाळी ! तूं आयगी भळै करण नैं तंग ?!
 
दोरा-स्सोरा काटल्यां , म्है आडा दिन नाथ !
दीयाळी तो आवतां… होवै बाथमबाथ !!
 
हाडफोड़ मूंघ्यावड़ो , गळै मांयनैं सांस !
दीयाळी थळकण खड़ी ; काळजियै भारास !!
 
हे लिछमी मा ! स्यात तूं बैवै आंख्यां मींच !
भगतू रह्’यो अडीकतो , सेठ लेयग्यो खींच !!
 
म्हैल किरोड़ी रै मंड्या दीयाळी रा ठाठ !
तीबै फाट्या चींथड़ा सतियो ; टूटी खाट !!
 
ईं घर बीं घर क्यूं धर्’या दीयाळी दो रूप ?
ठूंड भर्’यो घर एक रौ , इक  रौ घांटो टूंप !!
 
दीयाळी रा दिवटियां ! थां’री के औकात ?
धुख-धुख’ गाळां जूण म्है ,सिळग-सिळग’ दिन-रात !!
 
लिछमी गणपत सुरसती , रिध-सिध इंद्र कुबेर !
मेटो म्हारै देश सूं भूख पाप अंधेर !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
 
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31.10.12

नमो नमो सरकार बापजी

 
 
सरकार बापजी
(चित्र गूगल से साभार)
नमो नमो सरकार बापजी
घणो घणो उपकार बापजी 
 
जीवणद्यो का मारो म्हांनैं
थांनैं स्सौ इधकार बापजी
 
जका जितावै थांनैं ; थे बां-
स्यूं ई काढो खार बापजी
 
सालूं-साल बजट ल्यावो अर
म्हां पर मार-कु-मार बापजी
 
 थांरा पूत कमाऊ , थां घर
अन-धन रा भंडार बापजी 
 
म्हांरै आटै लूण बळीतै
पर क्यूं घालो भार बापजी 
 
पाणी बिजळी गैसकितां मिस
थे छाती असवार बापजी
 
गोजा म्हांरा यूं पकड़ो ज्यूं
धरग्या थे ई कमार बापजी
 
थे मोठां री छींयां मुळको
म्हांरै सिर तलवार बापजी
 
नेम-कायदा स्सै म्हां खातर
थे आंस्यूं परबार बापजी
 
बंगला-कार्यां , कोठ्यां-कोठा
थांरा सैंग बजार बापजी
 
छतर्यां थांरी , बिरखा थांरी
म्हांरौ कादो-गार बापजी
 
बरसां स्यूं म्हांरा मनसूबा
ठंडा ठीकर ठार बापजी
 
म्हांरौ घरियो तक म्हांरौ नीं
अर थांरौ संसार बापजी
 
करो मटरका रूप बदळथे
थे आछा खेलार बापजी
 
प्रगटो तो बस ,चुणाव-बेळा
नींस दीठ स्यूं बार बापजी
 
गुंडा डाकू चोर माफ़िया
सगळां नैं रुजगार बापजी
 
दफ़्तर-दफ़्तर रै भाठां ,
बिडरूप विराट हज़ार बापजी
 
रैयत रोवै उजळापै नैं
कळमष रह्या पसार बापजी
 
साच सुण्यां राजेन्दर-मूंढै
हुवै जबर-जूंझार बापजी
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

(चित्र गूगल से साभार)

28.6.12

संतरै री फांक ज्यूं रस छळकता थारा अधर


साथीड़ां ! घणीखमा !
लारला दिनां घणो अळूझ्योड़ो होवणै रै कारण
अर कीं नेट री बीजी समस्यावां कारण
नूंवी पोस्ट लगावण में इत्ती ढील हुयगी ।
अबै घणी उडीक करायां बिना
आपरी निजर है सा म्हारी आ रचना
गोरड़ी गजगामणी बिलमावणी तड़पावणी

कंवळ ज्यूं सरवर में शोभित ओपता थारा अधर
दो गुलाबी पांखड़्यां ज्यूं फुरकता  थारा अधर

 देह थारी फूठरी घड़दी विधाता चाव सूं
कनक केशर कोरणी सूं कोरिया थारा अधर

 मेनका अर उर्वशी पाणी भरै तूं है इस्यी
निरख' डोलै इंद्र-आसण ; अप्सरा थारा अधर

 डील सूं चोवै अमी , सौरम पवन में रसमसै
सुर सजै ब्रह्मांड... हवळै-सी हिला थारा अधर

 उफणतो जोबन ; रसालां ठांव में मावै नहीं
संतरै री फांक ज्यूं रस छळकता थारा अधर

नैण कटि जंघा पयोधर सै नशै रा ठाण है
काम रींझावै जगावै सौ नशा थारा अधर

 गोरड़ी गजगामणी बिलमावणी तड़पावणी
न्याल कर राजिंद-अधरां सूं मिला थारा अधर

-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

शब्दार्थ
कंवळ ज्यूं सरवर में शोभित ओपता थारा अधर = जैसे सरोवर में कमल शोभित है (वैसे ही तुम्हारे चेहरे पर ) शोभायमान तुम्हारे होंठ
पांखड़्यां ज्यूं फुरकता = कोमल पंखुरियों की तरह (हवा के झौंके मात्र से) कंपित
फूठरी = सुंदर  
चाव सूं = रुचि पूर्वक
कोरणी = कूची / कलम / चित्रकारी का ब्रश
कोरिया = चित्रित किये
है इस्यी = ऐसी है
डील सूं चोवै अमी = देह से अमृत चू’ता है
सौरम = सुगंध
रसमसै = रसमस / एकाकार होती / घुल जाती है
हवळै-सी = हौले-से
उफणतो जोबन ; रसालां ठांव में मावै नहीं = उफनता हुआ यौवन ऐसा कि रसीले फल पात्र में नहीं समा पा रहे 


…एक और बात ई आपसूं करणी है…
म्हारी हिन्दी अर राजस्थानी री पूरी री पूरी रचनावां अर रचनावां रा अंश नेट पर लोग बिना म्हारौ नाम लिख्यां आपरै लेखां में अर कमेंटां में अर फेसबुक रै केई समूहां (groups) में ठसकै सूं काम लेवता लाध्या है । पूछ्यां सूं केई जणा तो जवाब ई कोनीं दिया , केई गळती मानी , केई उलटो किरियावर / एहसान जतावता उथळो दियो कै मुफ़त में थां’रौ प्रचार करां …
ख़ैर , आप रा किया आप पासी ।
म्हारा हेताळू-भलचावू साथ्यां सूं अरज है कै 
म्हारी रचनावां रै ‘मिसयूज’ री 
आपनैं भणक पड़ै जद म्हनैं ज़रूर बतावाजो सा ।

मोकळी मंगळकामनावां !
प्रीत के तरही मुशायरे में
राजेन्द्र स्‍वर्णकार की ग़ज़ल