थांरौ साथो घणो सुहावै सा…

14.5.11

जिनगाणी लागै !

तूं सुपनो साचाणी लागै !

तूं सुपनो साचाणी लागै !
सखरो थारौ पाणी लागै !
नूंवी-नूंवी कूंपळ कंवळी
दारु-दाख पुराणी लागै !
मूरत सुघड़ अजंता री तूं
पदमण रूप-धिराणी लागै !
राधा पारवती भामा तूं
तूं साख्यात भवानी लागै !
विधना ; रूप घड़ण सूं पैलां
सिष्टी सगळी छाणी लागै !
काम-रती री दळ-बळ सागै
थारै घर मिजमानी लागै !
तूं सागै जद भोभर-डांफर
रितुवां सैंग सुहाणी लागै !
तूं आंख्यां साम्हीं होवै जद
जिनगाणी ; जिनगाणी लागै !
जाचक ज्यूं राजेन्दर अर तूं
सेठाणी इंद्राणी लागै !
 -राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar


भावार्थ
हे सुंदरी !
तुम साकार स्वप्न प्रतीत होती हो ।
तुम बहुत उत्तम श्रेष्ठ उच्च कुल की लगती हो ।
तुम नई नई कोमल कोंपल और पुरानी द्राक्षा की मदिरा जैसी हो ।
तुम अजंता की सुघड़ मूर्ति और पद्मिनी-सी सौंदर्यवती हो ।
कभी तुम राधा पार्वती सत्यभामा कभी साक्षात् भवानी लगती हो ।
अवश्य ही विधाता ने तुम्हारे अद्वितीय रूप-निर्माण से पहले समूची सृष्टि छानी होगी ।
तुम्हारे यहां दल-बल सहित कामदेव और रति 
आतिथ्य में रह रहे प्रतीत होते हैं ।
तुम साथ होती हो तब भीषण गर्मी-सर्दी , 
सभी ॠतुएं सुहानी लगती हैं ।
तुम आंखों के सामने होती हो तो ज़िंदगी सच में ज़िंदगी लगती है ।
राजेन्द्र जैसे रूप-याचक को तुम रूप-सौंदर्य से समृद्ध धनाढ़्य भद्र महिला एवं इंद्राणी लगती हो ।

*बंतळ*  
अठै आ बंतळ उगेरूं , आप भी जरूर आपरी राय दिरावसो ।

आदरजोग  हनवंत सिंह जी  ओळ्यूं री पैलड़ी पोस्ट पढ्यां पछै मेल सूं कैया
# आपरौ ब्लोग दाय आयौ सा.
इण ब्लोग सूं हिंदी हटावण री घणी घणी अरज छै...
आसा करां राजस्थानी री बैरी इण भासा नै ब्लोग सूं उखाड़ फैकोला.
जै राजस्थान
अर लारली पोस्ट पढ्यां पछै  वाणी जी  कैया
# कई शब्दां रा अर्थ म्हें राजस्थानी होर भी कोनीं जाणां...
जद कै पैलड़ी पोस्ट पर  वाणी जी  कैया हा कै
# हिंदी का ही प्रयोग ज्यादा करने के कारण कई बार कुछ राजस्थानी शब्द सुनने पर सहसा बोलना हो जाता है ..".इसे तो भूल ही गए थे" ...अपनी मातृभाषा से प्रेम करने वालों के लिए बहुत ही सार्थक और ज्ञानवर्धक प्रयास है ! भार !

सपट है कै आपां कित्तो ई गुमेज करां , पण राजस्थानी नैं राजस्थान रै आमजन तांई ई आपां कोनीं पुगा सक्या , पछै इण भाषा रै मूळ सिरजण नैं बीजी भाषा रा बोलणियां तांईं किंयां पुगा सकसां ? सिरजण रौ अरथ म्हारै खातर येन केन प्रकारेण नाम का ईनाम हड़पणो नीं होर जे कीं फूठरो , अर गीरबैजोग रच सक्या हां तो उण सिरजण रूपी मा सुरसत रै परसाद नैं घणा सूं घणा जणां तक बांटणो  है ।
अर इण सूं राजस्थानी भाषा रै बुरै री ठौड़ कीं भलो हुवण री ही संभावना है ।
ओळ्यूं रा और पाठक सिरदार इण बाबत आपरी  राय , प्रतिक्रिया राखसी तो बंतळ री सार्थकता बधसी ।

अर म्हैं तो घणो आशान्वित हूं , जद भाई सुज्ञ जी , आदरजोग नीरज जी गोस्वामी जितेन्द्र जी दवे अर ललित जी शर्मा जिस्या बीजा जणा , जिका राजस्थान सूं बार रैंवता  थका भी राजस्थानी भाषा रै खातर आपरै मन में हेज हेत राखै । मोकळा रंग ! घणी खम्मा !
म्हारा माताजी रौ स्वास्थ्य ठीक नीं हुवणै रै कारण अर बीजी व्यस्ततावां रै पांण म्हैं ओळ्यूं रा समर्थन करणियां ( फॉलोअर्स) अर टिप्पणीदातावां रौ आभार भी नीं कर सक्यो अर आपरी टिप्पणियां अर मेल रौ उथळो भी कोनीं दे पायो , माफ कर दीजो सा ।  म्हैं आप सगळा हेताळुवां रौ अंतस सूं आभार मानूं । और उणरौ तो और भी आभार जका राजस्थानी भाषा-भाषी नीं हुवणै रै उपरांत भी म्हारी राजस्थानी रचनावां पढर म्हारौ माण अर उत्साह बधावै ।






 
भळै पधारजो सा !