थांरौ साथो घणो सुहावै सा…

12.7.11

नीं थारै रूप जोबन रै समुंदर सूं बुझै तिषणा


समुंदर बूक सूं पील्यूं  


हुयो म्हैं बावळो ; थारै ई जादू रो असर लागै
कुवां में भांग रळगी ज्यूं , नशै में सौ शहर लागै
तुम्हारे प्यार में मैं बावला हो गया हूंयह तुम्हारे ही ज़ादू का प्रभाव लगता है 
 कुएं में भांग मिल गई होऐसे तुम्हारे नशे की गिरफ़्त में पूरा शहर ही आया हुआ है
छपी छिब थारली लाधै , जिको ई काळजो शोधूं 
बसै किण-किण रै घट में तूं , भगत थारा ज़बर लागै
जिस किसी का भी दिल टटोलूंतुम्हारी ही तस्वीर मिलती है ,
तुम किस किस के हृदय में बसी हो ? … ख़ूब हैं तुम्हारे भक्त ! 
लड़ालूमीजियोड़ो तन , कळ्यां-फूलां-रसालां सूं
भरमिया रंग-सौरम सूं , केई तितल्यां-भ्रमर लागै
तुम्हारा जिस्म फल-फूल-कलियों से लक-दक हैलबरेज़ है 
रंग और ख़ुशबू से भ्रमित अनेक भौंरे-तितलियां तुम्हारे ही इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं 
मुळकती चांदणी , काची कळी ए जोत दिवलै री 
कदै तूं राधका-रुकमण , कदै  सीता-गवर लागै
 मुस्कुराती चांदनी !  कमनीय कली !  दीप की ज्योति !
कभी तुम  राधिका और रुक्मिणी लगती होतो कभी सीता और पार्वती !
सुरग-धरती-पताळां में , न थारै जोड़  रूपाळी
थनैं लागै उमर म्हारी , किणी री नीं निजर लागै
स्वर्गपृथ्वी और पाताल में तुम्हारे जैसी कोई रूपसी नहीं है 
तुम्हें मेरी उम्र लग जाए ! तुम्हें किसी की बुरी नज़र  लगे 
नीं थारै रूप जोबन रै समुंदर सूं बुझै तिषणा
समुंदर बूक सूं पील्यूं , तिरसड़ी इण कदर लागै
तुम्हारे रूप-यौवन के समुद्र से तृप्ति नहीं होती 
मेरी प्यास ऐसे भड़क रही हैकि हथेलियों में भर कर एक घूंट में पूरा ही समुद्र पी जाऊं 
जपूं राजिंद आठूं  पौर थारै  नाम  री माळा
कठै म्हैं जोग नीं ले ल्यूं , जगत आळां नैं डर लागै
राजेन्द्र आठों प्रहर तुम्हारे ही नाम की माला जपता रहता है 
सबको भय है, …कहीं मैं संन्यास धारण  करलूं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar   
     

म्हारै लिख्योड़ी आ ग़ज़ल म्हारी बणायोड़ी धुन अर म्हारी आवाज़ में
अठै सुणो सा
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar   
तो बतावो सा आपनैं आ राजस्थानी ग़ज़ल किंयां लागी ?

ग़ज़ल उर्दू री विधा मानीजै … 
म्हैं उर्दू रा मानदंड पर खरी उतरै जिस्यी ग़ज़लां राजस्थानी में लिख्या करूं ।
आ ग़ज़ल बह्रे हजज़ मुसमन  सालिम पर आधारित है जिणरौ वजन है 
मुफ़ाईलुन  मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन  मुफ़ाईलुन

ख़ैर ! ग़ज़ल बाबत काम करणै री म्हनैं हूंस है , किणीं और री रुचि हुवै तो म्हासूं बात कर सकै ।



आप सगळां सूं माफी चावूं … 
माताजी रौ स्वास्थ्य ठीक नईं हुवण रै कारण घणो मौड़ो हाजर हुयो हूं । 
आपरा कमेंट / मेल आद रौ जवाब भी कोनीं दे सक्यो । 
आप सैयोग बणायां राखजो सा । 
नूंवा समर्थनदातावां रौ घणै मान आभार !

जल्दी मिलसां
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घणै हरख री बात है कि इणीं बह्र पर इणीं रदीफ़ क़ाफ़ियै नैं लेय’र 
भाई जोगेश्वर गर्ग जी भी एक फूठरी ग़ज़ल सिरजी है …
उडीकूं रोज… , म्हारी पीड़ री वांनैं खबर लागै
मगर मनमीत पर म्हारै दुशमणां रौ असर लागै

ब्लॉग गूंगां री गत पर आ पूरी ग़ज़ल भी पढणनैं पधारो ।



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