ल्यो सा एक ग़ज़ल
क्यूं मनड़ै नैं मारो हो
क्यूं बैर्’यां रा काळजिया
मुंह लटकायां ठारो हो
देखो मुळकै चांदड़लो
किण नैं आप निहारो हो
बा मंज़ल हेलो पाड़ै
किण दिश आप सिधारो हो
समदर मरुथळ स्सै लांघ्या
थे इब कांईं धारो हो
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra
Swarnkar
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भावार्थ
( मेरे
हिंदीभाषी मित्रों के लिए )
ऐसे
क्या जी (हिम्मत ) हार रहे हो ?
क्यों
मन को मार रहे हो ?
मुंह
पर उदासी ला’कर
क्यों
दुश्मनों के कलेजों को ठंडक पहुंचा रहे हो ?
देखो
, चंद्रमा मुस्कुरा रहा है
…तुम
किसे निरख रहे हो ?
वह
मंज़िल पुकार रही है ,
तुम
किस दिशा में जा रहे हो ?
समुद्र-रेग़िस्तान
सब लांघ चुके
…अब
तुम्हारे लिए क्या असंभव है ?
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…तो साथीड़ां ! विदा लेवण सूं
पैलां
अंग्रेजी नूंवै बरस 2013 री मंगळकामनावां
!
मिलसां भळै
जय रामजी री सा
12 टिप्पणियां:
लम्बे अरसे के बाद आपकी रचना पढने को मिली। इस प्यारी गजल का मजा जो मूल भाषा में है वह अनुवाद में कहां।
वैसे दिमाग पर थोड़ा जोर देते समझने के लिये किन्तु अनुवाद से हम झट से पढ गये। राजस्थानी भाषा का स्वाद ले नहीं पाये।
बहरहाल। इस रचना के लिये आभार।
लम्बे अरसे के बाद आपकी रचना पढने को मिली। इस प्यारी गजल का मजा जो मूल भाषा में है वह अनुवाद में कहां।
वैसे दिमाग पर थोड़ा जोर देते समझने के लिये किन्तु अनुवाद से हम झट से पढ गये। राजस्थानी भाषा का स्वाद ले नहीं पाये।
बहरहाल। इस रचना के लिये आभार।
राजस्थानी भी थोड़ी थोड़ी समझ में आ जाती है...अनुवाद से पूरी समझ में आ गई...बहुत अच्छे भाव हैं|
भाव अर्थ और व्यंजना की सशक्त अभिव्यक्ति खूब हुई है .
भाव अर्थ और व्यंजना की सशक्त अभिव्यक्ति खूब हुई है .
साहस्व्र्द्धक
सहस-वर्द्धक,आशावादी |
सरल सुबोशक सीधी सादी ||
सिश्वासों की मिट्टी-निर्मित-
'गगरी'रस की ज्यों लुढका दी ||
रचना में आशा,विशवास और रस का समन्वय है !
रचना में रस,आशा और विशवास है !
अरे वाह मित्र प्यारे क्या लिखा है......यार दिल में घुस जाती है थारे गीत....यूं कांई जी बढिया लिखो हो..वाह मान गए जी....थारे भाव दिल में घुस गए सें..पता नहीं थारो का भाव है..मारो तो किसी की याद आ गई से.....जिओ मित्र प्यारे जिओ...
हां माने तो मूल बोली में ही मजा आयो...
जोश खरोश शुभ भावना ,शुभ संकल्पों की रचना है यह .बधाई .निश्चय ही सरकार की हर स्तर पर असफलता लोगों को एक जगह पे ले आई है .
आपकी रचना की तरह आपका हौसला भी बुलंद है .प्रशंशा भी आप मुक्त कंठ से कर ते हैं .दूसरे के सुख में झूमना ,आनंदित होना ,खुलकर तारीफ़ करना सबके बस की बात नहीं ,बहुत अभागे हैं कुछ
लोग .शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का जो हमारे सिरहाने की निकटतम राजदान है .
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