रामराम सा !
इण कड़कड़ा'ती ठंड-सर्दी रै मौसम में
गरमागरम दाळ रौ सीरो अर बड़ा-पकौड़ा
अरोगता थका
औ मनहरण कवित्त बांचसो तो ठंड कीं तो कम लखासी
एकेला उठावो थे जवानी रौ औ भार क्यूं
काजळिया-राता-लीला नैण लागै आछा गोरी ,
बणावो इंयां नैं घड़ी-घड़ी तलवार क्यूं ?
चावै बां'रै खून सूं मंडावो
मांडणा ; मनावो
नैण-बाण मार' नित तीज क्यूं तिंवार
क्यूं ?
प्रीत रा पुजारियां रै , दरस-भिखारियां रै
काळजै चलावो निज रूप री कटार क्यूं ?
राजिंद है दास थांरौ , आपे ई संभाळ लेसी
एकेला उठावो थे जवानी रौ औ भार क्यूं ?
-राजेन्द्र
स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
(फोटू गूगल सूं साभार)
(फोटू गूगल सूं साभार)
नुंवै साल 2012 री मोकळी मंगळकामनावां मानज्यो सा !
12 टिप्पणियां:
thaanai bhi nuvain saal ki mokali mangalkaamnaa bhaai saa!
kavitt bhot sovano maandyo hai the! Badhaai !
बड़ी अच्छी कविता. इससे भी अच्छी सुरीली याद उन स्नेह स्निग्ध पकवानों की जो बीकानेर की मिटटी की सौंधी महक मुझ तक लाई. धन्यवाद राजेंद्र भाई , अगली बार घेवर और गुलाब जामुन को मत भूलना.
नववर्ष के शुभआगमन पर आप सबको बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं ।
naye varsh ki shubhkamnaye....apko aur aapke parivaar ko bhi....ishwar ki kripa ham sab par bani rahe...!!
ख़ूबसूरत प्रस्तुति, बधाई.
नूतन वर्ष की मंगल कामनाओं के साथ मेरे ब्लॉग "meri kavitayen " पर आप सस्नेह/ सादर आमंत्रित हैं.
सात्विक प्रेम के ताप से हर प्रेमी तप्त रहता है....
उसे प्रेमिका की निरंतर स्मृति जाड़े से दूर रखती है...
वह जाड़े की गलाने वाली ठंडक को प्रेम में मुग्ध (जड़) रहने के कारण से महसूस नहीं कर पाता.
यथासंभव समझने का प्रयास किया है मैंने इस कवित्त को.... भाव पूरी तरह समझ पाया हूँ.
बहुत सुन्दर और रोचक प्रस्तुति..आप को सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
आदरणीय...
आपकी रचना का शब्द माधुर्य राजस्थानी भाषा संस्कृति और संस्कारों के साथ मनुहारी भावनाओं की मिठाई का मीठा सा आभास है...
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें...
बहुत खूब!
नववर्ष शुभ हो.
बहुत सुन्दर.......
भाई राजेन्द्र जी लोकभाषा में पगी रचना मन को मोहे बिना नहीं रहती है |अद्भुत
बहुत सुन्दर
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