एक ग़ज़ल आप री निजर है सा
ऐ आछा बदळाव हुया
भाव-बिहूण सुभाव हुया
बदळां पाणी-पौन कठै
शहरां जैड़ा गांव हुया
किणरौ के गुमरेज करां
समदर सुकड़’ तळाव हुया
बण बैठ्या भाठा भगवान
इण मिस ऊंचा भाव हुया
इक काळजियै में धुखता
सौ नीं लाख अळाव हुया
राजिंद केई पंसेरी
परिवरतन में पाव हुया
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
शब्दार्थ
मेरे हिंदी-भाषा-भाषी मित्रों के लिए
ऐ - ये * आछा - अच्छे
बदळाव - बदलाव/परिवर्तन * हुया -
हुए
भाव-बिहूण - भाव-विहीन * सुभाव - स्वभाव
बदळां - बदलें * पाणी-पौन - पानी-हवा
कठै - कहां * जैड़ा -
जैसे
किणरौ - किसका * के -
क्या
गुमरेज - गर्व / घमंड * सुकड़’ - सिकुड़ कर
इण मिस - इस बहाने * केई - कई / अनेक
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मोकळी मंगळकामनावां !
7 टिप्पणियां:
भाई जी एक एक शेर सवा शेर है...थे तो जद भी करो ग़ज़ब ही करो हो ...
नीरज
बण बठ्या भाठा भगवान
इण मिस ऊँचा भाव हुया...
बहुत लाजवाब और सुन्दर भावों में पिरोई रचना .
हिंदी पर्याय देकर आप प्रस्तुति को बोध गम्य बना देतें हैं .आंचलिक साहित्य को बनाए रखने का याही तरीका है .बधाई आपकी लगन को कर्मठता और समर्पण आदर को कर्म के प्रति .रुश्दी का मौन
राजेन्द्र भाई इस दौर में रुश्दी साहब का मौन मुखरित है .
nice poem
very nice
very nice
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