थांरौ साथो घणो सुहावै सा…

16.4.12

ओळ्यूं मरुधर देश री


आपरी निज़र है सा
प्रवासी राजस्थान्यां खातर लिख्योड़ा म्हारा दूहा 
ओळ्यूं मरुधर देश री
रूह रमै रजथान में , देश-विदेशां देह !
भाषा भायां भोम सूं , दिन-दिन इधको नेम !!
जे आयो रजथान सूं ; रोहीड़ै रा फूल !
कीं माटी-कण दै म्हनैं ; मिटै बिजोगी-सूळ !!
सोनचिड़ी मरुदेश री ! कीं तो म्हासूं बोल !
माटी री वाणी सुणूं ... उठै काळजै छौळ !!
बाळपणो सुपनां-सज्यो , गुम्यो विदेशां आय !
रजथानी सूं प्रीत नित गाढ़ी हो'ती जाय !!
सुपनो आयो सोहणो , गयो नींद सूं जाग !
लाल-कसूंबल ओढणो , अर पचरंगिया पाग !!
बैठ्या हां परदेश में , घर री आवै याद !
राब  खीचड़ै  सोगरां-फोफळियां रौ स्वाद !!
धोरा मुळकै आंख में , मोर टहूकै कान !
मीठी बोली सांस में , वाऽऽ म्हारा रजथान !!
तीज मगरिया गोरबंद घूमर अर गणगोर !
नित-नित मन रै आंगणै , नाचै ओळ्यूं-मोर !!
ओळ्यूं मरुधर देश री , परदेशां जद आय !
मनड़ो चढ-चढ डागळै , रो-रो ' कुरजां गा' !!
आपा'ळां नैं शोधतां , कंठ गया है सूख !
पग-पग पर 'जैरामजी' करता गांव में रूंख !!
महानगरां में पूछसी , कुण हिवड़ै रौ हाल ?
माटी साम्हीं आवती , करती सार-संभाळ !!
मिळण' रेत घर आवती , चढ़ बायरियै-पूठ !
भोम-बिजोग्यां-सायरो , वाणी इमरत-घूंट !!
बायरिया ! रजथान जा , ल्यादै थोड़ी  रेत !
जावूं जठै बिखेरद्'यूं , अर निपजाद्'यूं हेत !!
अळगा धोरा-झूंपड़्यां , खेत  रेत मनवार !
इक बोली कंठां बसी ; सांवरिया ! उपकार !!
राख बडेरां री रमी... जकै गांव, जिण श्हैर !
मालक ! राखे मोकळी उण धरती पर म्हैर !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
(दोन्यूं फोटू गूगल सूं साभार)

13 टिप्‍पणियां:

Kishore Pareek ने कहा…

अपनी मिटटी की याद परदेश में,
प्रवासी भईयों की अन्तर मन के अहसासों को क्या शब्द चित्र दियें है.
.....उठै काळजै छौळ !
......रो-रो ' कुरजां गा'य
........रोहीड़ै रा फूल .

उपमाओं का जवाब नहीं ....



किशोर पारीक

दीपक जोशी (Deepak Joshi) ने कहा…

.

ghana footra hai sa tharla doha

दीपक जोशी

Nirmal Kothari ने कहा…

भोत बढ़िया लागी सा' ,
माटी स्यूं जोड़ने रै आपरै प्रयास ने सिलाम ! :)


Nirmal Kothari

Rajasthani Vaata ने कहा…

ghani chokhi !!

वाणी गीत ने कहा…

विशुद्ध मारवाड़ी में पढना सुखद है , कुछ भूले बिसरे मारवाड़ी शब्द याद आते हैं तो कुछ शब्दों पर अटकना होता है !

virendra sharma ने कहा…

जिसे माटी की महक न भाये उसे नहीं जीने का हक़ है .
अपनी धरती अपने लोग अपनी सोनचिरैया अपना मोर ,अपनी गैया सारे प्रतीक बेहतरीन अंदाज़ में गुंथे हैं इस माटी के प्रति प्रेम गीत में .
आपके आने टिपियाने का शुक्रिया .

Shanti Garg ने कहा…

बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

kanu..... ने कहा…

rajasthani poori tarah se samjh nahi aati par main maalva ki hu to baat to samjh hi jaati hu....kafi milti julti hai na maalvi aur rajasthani...
mujhe bhi khichda yaad aa gaya...meetha pasand nahi hai fir...ghar ki yaad dila gai aapki kavita...

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

आपकी यह रचना मुझे आपकी बेहतरीन रचनाओं में से एक लगी, बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए आपको बधाई

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

आपकी यह रचना मुझे आपकी बेहतरीन रचनाओं में से एक लगी, बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए आपको बधाई

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

वाह|||
बहुत सुन्दर रचना है..
:-)

Raju Patel ने कहा…

राजेन्द्र जी, मेरे ब्लॉग की मुलाक़ात लेने के लिए,पसंद करने के लिए और ब्लॉग पर टिप्पणी देने के लिए आप का अत्यंत आभारी हूँ.बिन-गुजराती पाठकों की प्रतिक्रिया मेरे लिए अनमोल है क्योंकि यही तो मेरे ब्लॉग का पाठक वर्ग है....

मैंने आप का ब्लॉग व आपका परिचय देखा.बहुत बहुत बधाई.आप काफी सीनियर है और विपुल मात्र में काम किया है/कर रहे है -आप को बहुत बहुत शुभकामनाएं. और एक सुझाव भी : नेट पर एक लिपियांतरण का सोफ्टवेर उपलब्ध है. उसकी मदद से आप अपनी कृति को अपनी मातृभाषा के साथ साथ अगर हिन्दी भाषा में भी रखे तो जो मारवाड़ी भाषा से परिचित नहीं वो भी आप की सृजनात्मकता का लाभ उठा सकते है....

Raju Patel ने कहा…

राजेन्द्र जी, पुन:विचार करते हुए मुझे लगता है की लिप्यान्तरण से कोई फायदा नहीं होगा...आप की रचना है तो देवनागरी में ही....अगर हिन्दीकरण हो तो अलग बात है -पर वो एक अलग और बड़े स्टार का काम है...