थांरौ साथो घणो सुहावै सा…

30.3.11

जय जय राजस्थान

राम राम सा 
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राजस्थान दिवस
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री 
मोकळी बधाई अर मंगळकामनावां !
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इण ब्लॉग पर आप सब रौ घणैमान स्वागत है सा !

आप सभी का यहां हार्दिक स्वागत है !

All of you are most welcome here .
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ओळ्यूं आपांरी जिनगाणी रौ घणो महताऊ भाव है । 
ओळ्यूं रा अरथ याद , स्मृति memory  या remembrance
सूं घणा बत्ता ( more ) अर ऊंडा (deep) है ।

इण ब्लॉग ओळ्यूं मरुधर देश री पर 
संसार रा सगळा राजस्थानी भायां-बहनां रौ 
अंतस रै ऊंडै हेत-हिंवळास सागै घणैमान स्वागत है… 
भलां ई आप किणी प्रांत, किणी देश, किणी भूभाग पर बस्योड़ा हुवो। 
आपरौ जे सात पीढ़ी पैलां भी राजस्थान सूं समंध हो 
अर आपनैं आपरी माटी रै प्रति , आपरी मात-भाषा-बोली रै प्रति अपणायत अर लगाव री जाबक ई ललक अर हूंस लखावै
तो औ ब्लॉग आप खातर ई है सा ।

आप आपरी मन री बात अठै निधड़क कर सको ।

जद कद  भी मातभोम ( mother-land ) री गोदी री ओळ्यूं आवै
का (or) मातभाषा ( mother-tongue) री रळी आवै ;

र बंतळ करो , कीं कैवोकीं सुणो

औ थांन आपरौ ई है सा ।
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आज माटी री वंदना रौ एक गीत
*जय जय राजस्थान*

सुरंग सुरीलो सोहणो , सुंदर सुरग समान ।
रढ़ियाळो रळियावणो , रूड़ो राजस्थान ॥
जय जय जय राजस्थान ! ओ म्हारा प्यारा रजथान !
 रूपाळा राजस्थान !  रींझाळा राजस्थान !
बिरमाजी थावस  सूं  मांड्या ,  थारा  गौरव  गान !!
 रणबंका रजथान  !   रंग रूड़ा राजस्थान !
ओ भुरजाळा राजस्थान !  ओ गरबीला राजस्थान !
गावै वीणा लियां सुरसती , थारा कीरत गान !!
लुळ लुळ' सूरज किरणां इण माटी रो माण बधावै सा
हाथ जोड़ियां आभो अपलक निरखै ; हुकम बजावै सा
मगन हुयोड़ो बायरियो कीरत में धुरपद गावै सा
नांव लियां ही मुरधर रो मन गरब हरख भर जावै सा
कुदरत मा मूंढ़ै मुळकै !
हिवड़ां हेज हेत छळकै !!
मस्ती मुख मुख पर झळकै !!!
जय जय जय राजस्थान ! ओ म्हारा प्यारा रजथान !
इण माटी रौ कण कण तीरथ , सूरज , चांदो अर तारा
कळपतरू सै झाड़ बिरछ है ;  गंगा जमुना नद नाळा
धोरां धोरां अठै सुमेरू ;  मिनख लुगाई जस वाळा
शबदां शबदां में सुरसत ; कंठां कंठां इमरत धारा
मुरधर सगळां नैं मोवै !
इचरज देवां नैं होवै !!
स्सै इण रै साम्हीं जोवै !!!
जय जय जय राजस्थान ! ओ म्हारा प्यारा रजथान !
वीरां शूरां री धरती री निरवाळी पहचाण है
संत सत्यां भगतां कवियां री  लूंठी आण-बाण है
आ माटी मोत्यां रो समदर , अर हीरां री  खाण है
म्है माटी रा टाबरिया , म्हांनै इण पर अभिमान है
रुच रुचइण रा जस गावां !
जस में आणंद रस पावां !!
मुरधर पर वारी जावां  !!!
जय जय जय राजस्थान ! ओ म्हारा प्यारा रजथान !
-राजेन्द्र स्वर्णकार


 ©copyright by : Rajendra Swarnkar


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~*अठै सुणो म्हारौ औ गीत ~*~

म्हारी बणायोड़ी धुन अर म्हारी ही आवाज में

खास आप वास्तै

(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
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* अरथ अर भाव *
सुरंग = आनन्द-माधुर्य-प्रफुल्लता-प्रदायक , शुभ , सुंदर ,  शुभ्रवर्णी सुशोभित 
सुरीलो = कर्णप्रिय मधुर स्वर वाला
सोहणो = शोभायमान , सुहावना
सुरग = स्वर्ग
रढ़ियाळो = अडिग आन बान वाला , जुझारू , पौरुषवान , दृढ़ प्रतिज्ञ
हठी , स्वाभिमानी शक्तिशाली ,
रळियावणो = मोहक , आकर्षक , प्रिय जिससे मिलने से मन ही न भरे
रूड़ो = सर्वोत्तम , सर्वश्रेष्ठ , समर्थ , सक्षम , चरित्रवान ,
( ‘रढ़ियाळो’ और ‘रळियावणो’ तथा ‘रूड़ो’ शब्दों में इतने विराट व्यापक सकारात्मक अर्थ अंतर्निहित हैं कि व्याख्या का विस्तार बढ़ते ही रहने की संभावना है । और विडंबना देखिए , ‘रढ़ियाळो’ और ‘रळियावणो’ इन शब्दों का प्रयोग आम रचनाकार की तो छोड़िए , पिछले 20-25 वर्षों में इधर-उधर और अकादमियों से सम्मानित-पुरस्कृत रचनाकारों तक ने अपनी रचनाओं में नहीं किया ।  मेरे ध्यान में तो नहीं आया । अफ़सोस , राजस्थानी के असंख्य RICH शब्दों का क्षरण और विलुप्तिकरण निरंतर होता जा रहा है …!)
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आप सब तक मेरी रचना के भाव संप्रेषित हो सके , इसलिए इसका अर्थ प्रस्तुत है ।
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ओ मेरे प्यारे राजस्थान ! तुम्हारी निरंतर जयजयकार हो ।
ओ मन मुग्ध कर देने वाले मनोहर राजस्थान  !
विधाता ने बहुत धैर्य , तल्लीनता और रुचि के साथ तुम्हारे गौरव-गान लिखे हैं ।
ओ भुजाओं के बलशाली योद्धा , ओ गर्वित राजस्थान !
ओ श्रेष्ठतम् रण-प्रवीण ! तुम्हें रंग हैं !
वीणा लिये हुए साक्षात् सरस्वती तुम्हारे कीर्ति-गान गा रही है ।
झुक-झुक कर सूर्य-किरणें राजस्थान की इस मिट्टी का मान बढ़ाती है ।
इसके आदेश की प्रतीक्षा में आसमान हाथ जोड़े हुए अपलक निहारता रहता है ।
आनन्दविभोर , ध्यानमग्न वायु के झोंके इसकी कीर्ति में ध्रुपद गाते रहते हैं ।
ऐसे मरुधर का नाम लेते ही मन में गर्व और हर्ष भर जाता है ।
प्रकृति यहां साक्षात् मुस्कुराती है ।
हृदय-हृदय में यहां अपनत्व और स्नेह छलकता है ।
संतुष्टि भरी मस्ती हर चेहरे पर दृष्टिगत होती है ।
ओ मेरे प्यारे राजस्थान ! तुम्हारी निरंतर जयजयकार हो ।
इस मिट्टी का कण-कण तीर्थ है , ज़र्रा-ज़र्रा सूर्य है , चांद है सितारा है ।
यहां का हर पेड़ , हर झाड़ कल्पवृक्ष है । यहां के नदी-नाले गंगा हैं , यमुना हैं ।
यहां के रेतीले टीले सुमेरु पर्वत हैं । यहां के नर-नारी बहुत यशस्वी हैं ।
यहां शब्द-शब्द में सरस्वती और कंठ-कंठ में अमृत है ।
ऐसी मेरी मरुधरा सबको मोहित करती है ।
इसकी महिमा देख कर देवताओं को भी आश्चर्य होता है ।
हर कोई राजस्थान के प्रति ही आसक्त और आशान्वित है ।
ओ मेरे प्यारे राजस्थान ! तुम्हारी निरंतर जयजयकार हो ।
शूर-वीरों की इस धरती की सबसे अलग ही पहचान है ।
यहां संतों , सतियों , भक्तों , कवियों की जबरदस्त आन-बान है ।
यह मिट्टी मोतियों का सागर और हीरों की खान है ।
हम इस मिट्टी की संतान हैं , जिन्हें इस पर गर्व और अभिमान है ।
हमें इस मिट्टी का यशोगान प्रिय है
राजस्थान की स्तुति में हमें आनन्द और रस की प्राप्ति होती है ।
हम इस मरुभूमि पर न्यौछावर हैं ।
ओ मेरे प्यारे राजस्थान ! तुम्हारी निरंतर जयजयकार हो ।
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तो आज विदा री वेळा आयगी भळै (again) मिलसां । 
अबै सीखड़ली दिरावो सा ।
आपरी प्रतिक्रियावां री घणी उडीक रैसी सा
जय राजस्थान 
जय राजस्थानी
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