समुंदर बूक सूं पील्यूं
कुवां
में भांग रळगी ज्यूं , नशै में सौ शहर लागै
तुम्हारे प्यार में मैं बावला हो गया हूं, यह तुम्हारे ही ज़ादू का प्रभाव लगता है ।छपी छिब थारली लाधै , जिको ई काळजो शोधूं
बसै किण-किण रै घट में तूं , भगत थारा ज़बर लागै
जिस किसी का भी दिल टटोलूं, तुम्हारी ही तस्वीर मिलती है ,
तुम किस किस के हृदय में बसी हो ? … ख़ूब हैं तुम्हारे भक्त !
लड़ालूमीजियोड़ो तन , कळ्यां-फूलां-रसालां सूं
भरमिया रंग-सौरम सूं , केई तितल्यां-भ्रमर लागै
तुम्हारा जिस्म फल-फूल-कलियों से लक-दक है, लबरेज़ है ।
रंग और ख़ुशबू से भ्रमित अनेक भौंरे-तितलियां तुम्हारे ही इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं ।
मुळकती चांदणी , काची कळी ए जोत दिवलै री
कदै तूं राधका-रुकमण , कदै सीता-गवर लागै
ऐ मुस्कुराती चांदनी ! ऐ कमनीय कली ! ऐ दीप की ज्योति !
कभी तुम राधिका और रुक्मिणी लगती हो, तो कभी सीता और पार्वती !
सुरग-धरती-पताळां
में , न थारै जोड़ रूपाळीथनैं लागै उमर म्हारी , किणी री नीं निजर लागै
स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल में तुम्हारे जैसी कोई रूपसी नहीं है ।
तुम्हें मेरी उम्र लग जाए ! तुम्हें किसी की बुरी नज़र न लगे ।
नीं थारै रूप जोबन रै समुंदर सूं बुझै तिषणा
समुंदर बूक सूं पील्यूं , तिरसड़ी इण कदर लागै
तुम्हारे रूप-यौवन के समुद्र से तृप्ति नहीं होती ।
…मेरी प्यास ऐसे भड़क रही है, कि हथेलियों में भर कर एक घूंट में पूरा ही समुद्र पी जाऊं ।
जपूं राजिंद आठूं पौर थारै नाम री माळा
कठै म्हैं जोग नीं ले ल्यूं , जगत आळां नैं डर लागै
राजेन्द्र आठों प्रहर तुम्हारे ही नाम की माला जपता रहता है ।
सबको भय है, …कहीं मैं संन्यास धारण न करलूं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra
Swarnkar
म्हारै लिख्योड़ी आ ग़ज़ल म्हारी बणायोड़ी धुन अर म्हारी आवाज़
में
अठै सुणो
सा
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
तो बतावो सा आपनैं आ राजस्थानी ग़ज़ल किंयां लागी ?
ग़ज़ल उर्दू री विधा मानीजै …
म्हैं उर्दू रा मानदंड पर खरी
उतरै जिस्यी ग़ज़लां राजस्थानी में लिख्या करूं ।
आ ग़ज़ल बह्रे हजज़ मुसमन सालिम पर आधारित है जिणरौ वजन है
मुफ़ाईलुन
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
ख़ैर ! ग़ज़ल बाबत काम करणै री म्हनैं हूंस है , किणीं और री रुचि हुवै तो म्हासूं बात कर सकै ।
आप सगळां सूं माफी चावूं …
माताजी रौ स्वास्थ्य ठीक नईं
हुवण रै कारण घणो मौड़ो हाजर हुयो हूं ।
आपरा कमेंट / मेल आद रौ जवाब भी कोनीं दे
सक्यो ।
आप सैयोग बणायां राखजो सा ।
नूंवा समर्थनदातावां रौ घणै मान आभार !
नूंवा समर्थनदातावां रौ घणै मान आभार !
जल्दी मिलसां
घणै हरख री बात है कि इणीं बह्र पर इणीं रदीफ़ क़ाफ़ियै नैं लेय’र
भाई जोगेश्वर गर्ग जी भी एक फूठरी ग़ज़ल सिरजी है …
उडीकूं रोज… , म्हारी पीड़ री वां’नैं खबर लागै
मगर मनमीत पर म्हारै दुशमणां रौ असर लागै
ब्लॉग गूंगां री गत पर आ पूरी ग़ज़ल भी पढणनैं पधारो ।
40 टिप्पणियां:
राजेंदार भाई वारई में संन्यासी न हो जैएं....
बहुत बढ़िया...
# वीना बहन जी , साची में संन्यासी होणै रौ कोई इरादो कोनीं …:)
इस्यी रचनावां कुण रचसी पछै ?
सुणनै री सुविधा होवै तो एकर आ ग़ज़ल ज़रूर सुणज्यो सा
आदरणीय राजेन्द्र स्वर्णकार जी...राम राम सा...
थारी आ ग़ज़ल म्हाने घणी चोखी लागी|
भगवान् माताजी रो स्वास्थ बढ़िया करे, आ म्हारी भगवान् सूँ प्रार्थना है|
हा हा...थे संन्यास न लो तो ही चोखो रेवेलो...म्हाने फेर ज्ञान कुण देसी पछे?
सुन्दर और प्रभावी प्रस्तुति ||
bahut sunder ghazal hai.padhvaane aur sunaane ke liye aabhar.
कमाल की शब्द रचना और भाव-संयोजन है...!
चमत्कृत करती है आपकी रचना...!!
अनुवाद दे दिया तो अच्छा हो गया, वैसे भी समझ लेता, मगर अनुवाद के कारण रचना का आनंद और अधिक बढ़ गया. इसे तो मैं अपनी अनुवाद पत्रिका ''सद्भावना दर्पण'' मे भी छाप सकता हूँ. इसी तरह धमाकेदार लेखन करते रहे.
भाई जी थारी ग़ज़ल पढ्ताई लाग्यो मानो आपना देश माई बैठ्यो हूँ के बात कही है समुंदर बूक सूं पील्यूं , तिरसड़ी इण कदर लागै लाग्यो मानो मन झूम रह्यो ह भोत भोत बधाई थान
Rajasthai bhasha men bahut achchi rachna !! Anuvaad ki karan samjhne men aasani rahi !!
Aapko bahur bandhai !!!
गुरु पूर्णिमा के पवन पर्व पर हार्दिक मंगलकामनाये !!
बहुत ही उम्दा प्रस्तुती
सुन्दर गजल संयोजन । उम्मीद है माताजी का स्वास्थ्य अब बेहतर होगा ।
MHANE TO AAP BARBAS BIHARI RE SATSAIYA YAD KARA D.
REETI KAVYA GO
GAGAR ME SAGAR
राजेन्द्र भाई स्वर शब्द और संगीत भाव के साथ एक रस हो गएँ हैं .हम राजस्थानी लोक संगीत सुनते गाते रहें है अपने नारनौल प्रवास के दौरान .बहुत ऊंचे पाए की आपकी रचना और मुकम्मिल स्वर ठहर कर गई ग़ज़ल .
सुंदर रचना है।बधाई।
सुंदर रचना है।बधाई।
I am posting it on my blog on thatsme and going to share with my friends on Facebook. I presume, you dont have any objection Rajendra Ji.
I further request you to make an ID on my site thatsme and post your Rajasthaanee or any other gazal, poetry etc.
The link is http://thatsme.in/main/authorization/signup?
Please Sign Up.
Shesh Dhar Tiwari
--
That's Me
09889978899 / 09935214849
http://thatsme.in
जय राम जी की भाई राजेंद्र जी
राजस्थानी का अपना ही आनंद है.....भीतर तक उतर जाती है.....
बहुत बढ़िया ग़ज़ल.....पढ़ कर आनंद आ गया....
साधुवाद स्वीकारें...
--योगेन्द्र मौदगिल
राजस्थानी ग़ज़ल पढ़ कर आनंद आ गया....अनुवाद के कारण ग़ज़ल समझना आसान हो गया.
कुछ कुछ समझ आ गयी ... फिर अनुवाद पढ़ के मज़ा ही आ गया ..
श्रृंगार रस में भीगी है पूरी ग़ज़ल ..क्या बात !
अर्थ के साथ पढ़ने और सुनने का आनन्द आ गया.
राजेन्द्र जी बधाई. रचना उत्तम है.
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
बहुत बढ़िया ...भाव हिंदी में दिए थे तो समझना आसान हो गया ..आभार
राजेन्द्र जी! राजस्थानी भाषा में भी गजल बहुत सुन्दर और सरल लगी... श्रृंगार रस से ओतप्रोत उम्दा गजल.. सादर
लड़ालूमीजियोडो तन और 'गवर' वाला काफिया इस राजस्थानी गजल में चार चाँद लगा रहे हैं| तिस पर राजेन्द्र सा थारी मिट्ठी मिट्ठी अवाज तो गजब कर रई सै| घणी खम्मा भाई सा|
ईब तो हम लोगां भी बावड़ा हो रए हैं|
आदरणीय दादा श्री को सादर प्रणाम....अहा कितने दिनों बाद आज आपकी सुमधुर स्वर लहरी सुनने को मिली है....वाह
और ग़ज़ल इसका जितना देवनागरी रूपांतरण से समझ पाया हूँ ये तो दिव्य प्रेम को जाहिर करती है ..लगता है सारा सम्वाद आत्मा का परमात्मा से है....बहुत सुन्दर दादा !
आशीर्वाद और अनवरत स्नेह का आकांक्षी
आपका अनुज.
भाई राजेन्द्र जी ,
बड़ा आनंद आया राजस्थानी भाषा की ग़ज़ल पढ़कर | इसकी मिठास कुछ अलग ही है |
साथ में हिंदी अनुवाद देकर आपने सम्पूर्ण रसास्वादन करा दिया |
bahut umda prastuti, waise rajasthani to nahi aati per ha hindi me padker to maja aa gaya........laga ki gagar aur sagar yahi hai sab,,,,,,,,,,behtreen prastuti ke liye aabhar
राजेन्द्र भाई ,बेहद सार्थक टिपण्णी के लिए आभार .
RAJASTHANI BHASHA KA APNAA MEETHA SWAAD HAI . AAPKEE GAZAL PADH KAR
AANANDIT HOGYAA HOON . ASHA HAI
ASEE GAZALEN BHAVISHYA MEIN BHEE
PADHNE KO MILENGEE AAPKE OR SE
पत्थर में भी प्रेम की धार बहा देनेवाली रचना.
राजस्थानी में ग़ज़ल लिखने के प्रयास कम हुए हैं. ऐसे में आपकी रचना आशा जगाती है.
माताजी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए शुभकामनाये.
सबदां रो जादू कैवूं कै थांरै कंठां बसी सरसती रो जादू... इण ढाळै लिखण- अर गजल गावणवाळा मांय थे बेजोड़ हो.. बधाई।
भाई जी
सिंगार रंग में पूरी तरह डूबी इस बेजोड़ रचना के बारे में क्या कहूँ? शब्द ही कम पड़ रहे हैं. ऐसे अनूठे शेर निकाले हैं आपने की बरबस वाह वाह निकल रही है मुंह से. सच आपकी प्रतिभा का कोई जवाब नहीं.
"हुयो मैं बावलों..."
"लडालूमीजियोड़ो तन..."
"नी थारो रूप जोबन रै..."
बेजोड़ हैं. इन्हें मैं अपने साथ लिए जा रहा हूँ.
नीरज
आप आंचलिक गज़लकार बन एक नै साहित्यिक विधा रच रहें हैं .राजस्थानी लोक संगीत मांड और राग देश का जादू हमने खूब अनुभूत किया है ."म्हारी घुमड़ छ नख - डालि एरी माँ ....",समदरिया झोला खावे सा .ओ बालमा ,काना ने कुंडल ,लावो रंग रसिया म्हारी रखडी रत्न जडावो सा हो बालमा ......आप कल की खूबसूरत तस्वीर के प्रति आश्वस्त करतें हैं .जुग जुग जियें ऐसे ही हर दिल अज़ीज़ बनके .कृपया यहाँ भी पधारें -http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
rajasthani rachna ko itne kareeb se janane ka mauka pahli baar mila. Aabhar.
(Jaane kyon comment box mein hindi font kaam nahin kar pa raha.)
बहुत बढ़िया
ओ भाया जी ! म्हणे राजस्थानी तो कोनी आवे पण थारी सारी गजलां सुहाणी लागे. ई राजस्थानी की बातां ई निराली हे जी !
माता जी को क्या हुआ है ?
राजेंद्रजी आप तो आप हो। आपरी राजस्थानी भाषा री गजला रो मुकाबलों कोनी। आपरो ब्लॉग सांतरो है म्हने घणो चोखो लागे। आपने लखदाद।
राजेंद्रजी आप तो आप हो। आपरी राजस्थानी भाषा री गजला रो मुकाबलों कोनी। आपरो ब्लॉग सांतरो है म्हने घणो चोखो लागे। आपने लखदाद।
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