मा ई मिंदर री मूरत
जग खांडो , अर ढाल है मा !
टाबर री रिछपाळ है मा !
जायोड़ां पर आयोड़ी
विपतां पर ज्यूं काळ है मा !
दुख-दरियाव उफणतो ; जग
वाळां आडी पाळ है मा !
मैण जिस्यो हिरदै कंवळो
फळ-फूलां री डाळ है मा !
जग बेसुरियो बिन थारै
तूं लय अर सुर-ताल है मा !
बिरमा लाख कमाल कियो
सैंस्यूं गजब कमाल है मा !
लिछमी सुरसत अर दुरगा
था'रा रूप विशाल है मा !
मा ई मिंदर री मूरत
अर पूजा रौ थाळ है मा !
जिण काळजियां तूं नीं ; बै
लूंठा निध कंगाल है मा !
न्याल ; जका मन सूं पूछै
- था'रो कांईं हाल है मा !
धन कुणसो था'सूं बधको ?
निरधन री टकसाल है मा !
राजेन्दर था'रै कारण
आछो मालामाल है मा !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
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मां पर लिखी मेरी राजस्थानी ग़ज़ल के भावों तक आप अवश्य ही पहुंच पाए हैं ,
कुछ और गहराई से रचना की आत्मा का स्पर्श कर पाएं ,
इसलिए कठिन शब्दों के अर्थ प्रस्तुत हैं -
खांडो = खड़्ग/ तलवार
रिछपाळ = रक्षक
विपतां = विपदाएं
काळ = काल
वाळां आडी पाळ = बाढ़ से उफनते नालों के लिए अस्थायी बांध
मैण = मोम
हिरदै = हृदय
कंवळो = कोमल
सैंस्यूं गजब = सबसे अद्भुत
जिण काळजियां तूं नीं = जिन कलेजों में तू नहीं है
लूंठा निध = (वे)धनवान बेटे
न्याल = धन्य धन्य
था'रो कांईं हाल है मा != तुम्हारा क्या हाल है मां !
कुणसो = कौनसा
बधको = बढ़कर
निरधन री टकसाल = निर्धन बेटे की टकसाल
था'रै कारण = तुम्हारे कारण
आछो मालामाल = अच्छा मालदार
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राम राम सा