लागी बिरखा री झड़ , तड़ड़ तड़ड़ तड़ ,
बींज री कड़ड़ कड़ काळजो कंपावै है !
बादळिया भूरा-भूरा , बावळा हुया है पूरा ,
आंगणां सूं ले' कंगूरां ... उधम मचावै है !
दाता री हुई है मै'र , आणंद री बैवै लैर ,
मुळकै सै गांव-श्हैर ; उछब मनावै है !
धण सूं न आगो हुवै , कोई न अभागो हुवै ,
कंत - प्री रो सागो हुवै , मेह झूम गावै है !
झूमै नाचै छोरा छोर्ऽयां, सैन्यां सूं रींझावै गोर्ऽयां,
करै मनड़ां री चोर्ऽयां , रुत मनभावणी !
देश में नीं रैयो काळ , भर्ऽया बावड़्यां र ताळ
,
हींडा मंड्या डाळ-डाळ ; पून हरखावणी !
हिवड़ां हरख-हेत , सौरम रम्योड़ी रेत ,
हर्ऽया जड़ाजंत खेत , प्रकृति रींझावणी !
मुट्ठी-मुट्ठी सोनो मण , रमै राम कण-कण,
मोवै सूर री किरण , चांदणी सुहावणी !
मेळां रा निराळा ठाठ , रमझम बजारां हाट ,
मीठी छोटी छांट ... जाणै मोगरै री माळा है !
भोम आ लागै सुरग , मस्ती जागै रग - रग ,
तुरंग-कुरंग-खग झूमै मतवाळा है !
डेडरिया टरर टर , बायरियो हहर हर ,
रूंख चूवै झर-झर , छाक्या नद-नाळा है !
मोरिया टहूकै, मीठी कोयल्यां कुहूकै ;
इस्यै मौसम में चूकै जका ... हीणै भाग वाळा है !
भोळो मल्हारां गावै , रास कान्हूड़ो रचावै ,
रति कम नैं रींझावै , चौमासै नैं रंग है !
रंगोळी मंडावै आभो , धरा पैरै नुंवो गाभो ,
करै दामणी दड़ाभो , मेघ कूटै चंग है !
धीर तोड़ै सींव , जीव - जीव करै पीव ,
रैवै रुत आ सदीव तद बिजोग्यां पासंग है !
आड़ंग रै अंग-अंग , उमंग-तरंग ,
रैवै निसंग राजिंद ऐड़ी किण री आसंग है !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar
साची बतावो , आपनैं म्हारी बणायोड़ी आ धुन किस्यी'क लागी ?
*******************************************
अनुवाद
पढ़ कर आप अवश्य ही रचना की आत्मा तक पहुंच पाएंगे
चौमासै नैं रंग है !
नतमस्तक और आभारी हैं वर्षा ॠतु के प्रति !
तड़तड़ाहट की ध्वनि के साथ बरखा की झड़ी लग गई है ।
आकाशीय बिजली की कड़कड़ाहट से कलेजा कंपायमान हो रहा है ।
धूम्रवर्णी बादल पूर्णतः पगला गए हैं ,
( तभी तो )
आंगन - आंगन से ले' कर कंगूरों - कंगूरों तक उपद्रव मचाते ' फिर रहे हैं ।
दयालु परमात्मा की अनुकंपा से हर्षोल्लास की लहर बह निकली है ।
( इसलिए )
सारे गांव - शहर हंसते - मुस्कुराते उत्सव मना रहे हैं ।
ऐसे में कोई अपनी भार्या से दूर न हो । कोई भी अभाग्यवान न रहे ।
हर प्रियतम - प्रिया का संगम - समागम हो । मेघ झूम - झूम कर यही गान कर रहे हैं ।
वर्षा आगमन पर बालक - बालिकाएं झूम रहे हैं , नाच रहे हैं ।
नवयौवनाएं इशारों से विमोहित कर रही हैं , हृदय हरण कर रही हैं ।
सच , यह ॠतु बहुत मनभावनी है ।
अब देश में अकाल नहीं रहा । सारी बावड़ियां और तालाब भर गए ।
डाली - डाली पर झूले पड़ गए । अब हवा भी प्रसन्नता प्रदायक है ।
हृदय - हृदय हर्ष और स्नेह से परिपूर्ण है । रेत में भी सुगंधि समा गई है ।
खेत - खेत हरियल फसलों से लकदक हैं । प्रकृति विमुग्ध कर रही है ।
धन धान्य की ऐसी प्रचुरता हो गई जैसे
हर मुट्ठी में मण भर ( चालीस किलोग्राम ) स्वर्ण आ गया हो ।
कण - कण में ईश्वर का साक्षात् हो रहा है ।
सूर्य - रश्मियां सम्मोहित कर रही हैं ।
चांदनी सुहानी प्रतीत होने लगी है ।
वर्षा ॠतु में मेलों के अपने निराले ठाठ बाट होते हैं ।
हाट - बाज़ारों में चहल-पहल हो जाती है ।
ऐसे में घर से बाहर , मेले-बाज़ार में नन्ही बूंदों की फुहार से सामना होने पर लगता है ,
जैसे मोगरे के नन्हे - सुगंधित फूलों की माला से स्वागत हो रहा है ।
धरती स्वर्ग लगने लगती है ।
अंग- अंग , नस - नस में मस्ती जाग्रत हो जाती है ।
मनुष्य ही क्या , सब छोटे - बड़े पशु - पक्षी … तुरंग , कुरंग , खग मतवाले हो'कर झूमने लगते हैं ।
दादुर ( मेंढक ) टर्र टर्र करने लगते हैं । हवा के झोंके हहराने लगते हैं ।
फल - फूल से लकदक वृक्षों से सम्पदा चू'ने - झरने लगती है ।
सब नदी - नाले छक जाते हैं । मयूर वृंद टहूकने लगते हैं । कोयल समूह मधुर स्वरों में कुहुकने लगते हैं ।
ऐसे मनोहारी मौसम में भी कोई इन सुखों से वंचित रहते हैं तो वे बहुत भाग्यविहीन हैं ।
वर्षा ॠतु में साक्षात् शिव भी मल्हारें गाते रहते हैं ।
रसज्ञ कृष्ण रास रचाते हैं । रति स्वयं कामदेव को रिंझाती है ।
ऐसे चौमासे को नमन है ! आभार है !
धन्य है यह ॠतु , जब अंबर अल्पना और रंगोली सजाता है ।
वसुंधरा नवीन वस्त्र - परिधान पहनती है ।
दामिनि दमक कर गर्जना करती है । मेघ चंग पर प्रहार करके जश्न मनाते हैं ।
ऐसे में धैर्य सीमा तोड़ने लगता है ।
प्राणिमात्र प्रिय - प्यास में प्रेमिल - प्रमुदित पाए जाते हैं ।
यही ॠतु सदैव सर्वदा रहे ,
तो वियोगीजन को वियोग के बराबर मात्रा में संयोग का संतुलन बनाने का सुअवसर मिले ।
वर्षा ॠतु , यहां तक कि उसके आगमन के संकेत मात्र के अंग - प्रत्यंग में भी उमंग - तरंग विद्यमान है ।
कवि राजेन्द्र स्वर्णकार कहता है कि ऐसे में कोई निस्पृह - निस्संग रह ले , किसकी ऐसी सामर्थ्य है ?