तूं सुपनो साचाणी लागै !
तूं सुपनो साचाणी लागै !
सखरो थारौ पाणी लागै !
नूंवी-नूंवी कूंपळ कंवळी
दारु-दाख पुराणी लागै !
मूरत सुघड़ अजंता री तूं
पदमण रूप-धिराणी लागै !
राधा पारवती भामा तूं
तूं साख्यात भवानी लागै !
विधना ; रूप घड़ण सूं पैलां
सिष्टी सगळी छाणी लागै !
काम-रती री दळ-बळ सागै
थारै घर मिजमानी लागै !
तूं सागै जद भोभर-डांफर
रितुवां सैंग सुहाणी लागै !
तूं आंख्यां साम्हीं होवै जद
जिनगाणी ; जिनगाणी लागै !
जाचक ज्यूं राजेन्दर अर तूं
सेठाणी इंद्राणी लागै !
-राजेन्द्र स्वर्णकार©copyright by : Rajendra Swarnkar
भावार्थ
हे सुंदरी !
तुम साकार स्वप्न प्रतीत होती हो ।
तुम बहुत उत्तम श्रेष्ठ उच्च कुल की लगती हो ।
तुम नई नई कोमल कोंपल और पुरानी द्राक्षा की मदिरा जैसी हो ।
तुम अजंता की सुघड़ मूर्ति और पद्मिनी-सी सौंदर्यवती हो ।
कभी तुम राधा पार्वती सत्यभामा कभी साक्षात् भवानी लगती हो ।
अवश्य ही विधाता ने तुम्हारे अद्वितीय रूप-निर्माण से पहले समूची सृष्टि छानी होगी ।
तुम्हारे यहां दल-बल सहित कामदेव और रति
आतिथ्य में रह रहे प्रतीत होते हैं ।
आतिथ्य में रह रहे प्रतीत होते हैं ।
तुम साथ होती हो तब भीषण गर्मी-सर्दी ,
सभी ॠतुएं सुहानी लगती हैं ।
सभी ॠतुएं सुहानी लगती हैं ।
तुम आंखों के सामने होती हो तो ज़िंदगी सच में ज़िंदगी लगती है ।
राजेन्द्र जैसे रूप-याचक को तुम रूप-सौंदर्य से समृद्ध धनाढ़्य भद्र महिला एवं इंद्राणी लगती हो ।
*बंतळ*
अठै आ बंतळ उगेरूं , आप भी जरूर आपरी राय दिरावसो ।
आदरजोग हनवंत सिंह जी ओळ्यूं री पैलड़ी पोस्ट पढ्यां पछै मेल सूं कैया
# आपरौ ब्लोग दाय आयौ सा.
इण ब्लोग सूं हिंदी हटावण री घणी घणी अरज छै...
आसा करां राजस्थानी री बैरी इण भासा नै ब्लोग सूं उखाड़ फैकोला.
आसा करां राजस्थानी री बैरी इण भासा नै ब्लोग सूं उखाड़ फैकोला.
जै राजस्थान
अर लारली पोस्ट पढ्यां पछै वाणी जी कैया
# कई शब्दां रा अर्थ म्हें राजस्थानी होर भी कोनीं जाणां...
जद कै पैलड़ी पोस्ट पर वाणी जी कैया हा कै
# हिंदी का ही प्रयोग ज्यादा करने के कारण कई बार कुछ राजस्थानी शब्द सुनने पर सहसा बोलना हो जाता है ..".इसे तो भूल ही गए थे" ...अपनी मातृभाषा से प्रेम करने वालों के लिए बहुत ही सार्थक और ज्ञानवर्धक प्रयास है ! आभार !
सपट है कै आपां कित्तो ई गुमेज करां , पण राजस्थानी नैं राजस्थान रै आमजन तांई ई आपां कोनीं पुगा सक्या , पछै इण भाषा रै मूळ सिरजण नैं बीजी भाषा रा बोलणियां तांईं किंयां पुगा सकसां ? सिरजण रौ अरथ म्हारै खातर येन केन प्रकारेण नाम का ईनाम हड़पणो नीं हो’र जे कीं फूठरो , अर गीरबैजोग रच सक्या हां तो उण सिरजण रूपी मा सुरसत रै परसाद नैं घणा सूं घणा जणां तक बांटणो है ।
अर इण सूं राजस्थानी भाषा रै बुरै री ठौड़ कीं भलो हुवण री ही संभावना है ।
ओळ्यूं रा और पाठक सिरदार इण बाबत आपरी राय , प्रतिक्रिया राखसी तो बंतळ री सार्थकता बधसी ।
अर म्हैं तो घणो आशान्वित हूं , जद भाई सुज्ञ जी , आदरजोग नीरज जी गोस्वामी , जितेन्द्र जी दवे अर ललित जी शर्मा जिस्या बीजा जणा , जिका राजस्थान सूं बा’र रैंवता थका भी राजस्थानी भाषा रै खातर आपरै मन में हेज हेत राखै । मोकळा रंग ! घणी खम्मा !
म्हारा माताजी रौ स्वास्थ्य ठीक नीं हुवणै रै कारण अर बीजी व्यस्ततावां रै पांण म्हैं ओळ्यूं रा समर्थन करणियां ( फॉलोअर्स) अर टिप्पणीदातावां रौ आभार भी नीं कर सक्यो अर आपरी टिप्पणियां अर मेल रौ उथळो भी कोनीं दे पायो , माफ कर दीजो सा । म्हैं आप सगळा हेताळुवां रौ अंतस सूं आभार मानूं । और उणरौ तो और भी आभार जका राजस्थानी भाषा-भाषी नीं हुवणै रै उपरांत भी म्हारी राजस्थानी रचनावां पढ’र म्हारौ माण अर उत्साह बधावै ।
भळै पधारजो सा !
20 टिप्पणियां:
भाई साहिब !राजस्थानी लोक संगीत से बेहद लगाव रहा है मेरा भी जयपुर शैली "एक बार आवोजी जम्हाई जी पाहुनो,थारा सास्सू जी बुलावे घर आव जमाई लाड्कना"के लोक गीत हों या बीकानेरी के .आप अच्छा काम कर रहें हैं .आज अपने पुराने ब्लॉग पर गया तो देखा आपकी टिपण्णी आदर पूर्वक मौजूद थी .दर असल मेरे "राम राम भाई "नाम से ही दो ब्लॉग गलती से चल रहें हैं नवीनतम में पोस्ट की संख्या ३००० को छू रही है ,विषय चल रहा है ,मनोरोग और दिमाग की बीमारियाँ (ब्रेन अटेक ).जबकि दूसरे ब्लॉग पर मात्र दस पोस्ट हैं वहीँ शराब सम्बन्धी एक लेख पर आपकी टिपण्णी देखी .
आप राजस्थानी के शब्दों के अर्थ भी देन भावार्थ के साथ तो बड़ी बात होगी हमारे जैसे लोक संगीत के दीवानों के लिए ।
"चाव चाव में भूल याई फूलआरी साडी ज़रा सी रोक दे बाबूड़ा थाड़ी रेलगाड़ी "बहुत अच्छा लिख रहें हैं आप .बधाई .
हणसा री बात चिनीक उगर हुवे, पण साची ह |
बात विरोध री कोणी, पण
विरोध ह इन सोच रो क "हिंदी रे बिन राजस्थानी पंगु ह" |
हणसा आ हि कवे ह ईन पंगु सोच ने नाख दयो बेरा माय |
लोक संवेदना में रचा बसा गीत चाहे वह किसी भाषा में हो मन को मोह लेता है |आपने यह एक उत्कृष्ट कार्य किया है |बहुत बहुत बधाई
ghanemaan raam-raam ji
"नूंवी नूंवी कूंपळ कंवळी
दारु दाख पुराणी लागे "
राजेनदर भाई सा यू तो राजकुमारी मूमल रो रुप को बखान लागे ।
माँ पर एक बहुत ही भाव पूर्ण रचना सतीश सक्सेना जी के ब्लॉग पर आपकी लिखी पढ़ी .मन गदगद स्नेहिल यादों से संसिक्त अब तक है .बधाई .
राजेन्द्र जी । आपके वारे में जाना । आपकी अभी तक प्रकाशित दो पुस्तकों के लिये हार्दिक बधाई। सरस्वती ने आप पर कितनी कृपा की है जो साहित्य श्रृजन के साथ चित्रकारी और संगीत में भी आपका दखल है। मेरी शुभकामनायें है कि आप हजार दफे पुरस्कृत हो।
हां इस कविता का आपने अर्थ भी किया । वैसे मुझे कुछ दिन छबडा, करौली, पिडावा जो मध्यप्रदेश से लगे है वहां रहने का काम पडा है तो राजस्थानी बोली बडी प्यारी लगती है। पधारो सा म्हारा देस
बहुत अच्छा लिखा है...अच्छा हुआ जो हिंदी में अर्थ भी बता दिया वर्ना थोड़ा-बहुत तो अनुमान लग जाता है....पूरा नहीं....
राजेंद्रजी...
पहली बार आयी यहाँ
और आते ही आपकी रचना ने मन्त्र-मुग्ध कर दिया...
इतना सुन्दर सरल चित्रण...
कैसे किया आपने ??
तारीफ के लिए शब्द कहाँ से लाऊँ ??
Dear Rajendra ji....
Greetings of the day....
It's my pleasure to read your blog. Congrats on writing such a wonderful ....."LOK GEET'
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
aapno rajasthan
अति सुन्दर
वैसे तो हिंदी के सारे रूप, या यूँ कहें की देवनागरी में लिखी लगभग सभी भाषाएँ / बोलियाँ समझ में आ जाती हैं लेकिन यहाँ भावार्थ पढ़ कर आनंद दुगुना हो गया |
शानदार ...
विधना रूप घडण सूं पैलां,
सिष्टि सगली छाणी लागै |....क्या बात है...
बहुत सुन्दर .राजस्थान के पड़ोसी ..आगरा बासी होने से काफी राजस्थानी समझ में आरही है...
प्रिय श्री राजेंद्र स्वर्णकार जी !
अभिवादन.
आप जैसे समृद्ध लेखनी के धनी ने मेरी कविताओं की तारीफ की ,बहुत अच्छा लगा.दिल से उपजी बात ही दिल को छुआ करती है.आपकी हिंदी और राजस्थानी रचनाएँ इत्मिनान से पढ़ कर रस से सराबोर हो गया.सच कहा जाये तो भावनाओं का धरातल ह्रदय होता है.जिसकी अपनी कोई भाषा नहीं होती.भावनाओं को किसी भी भाषा में अभिव्यक्त किया जाये ,दिल को समझ में आ ही जाती है.आपकी राजस्थानी रचनाएँ ह्रदय को छू गईं.मेरे अंचल की छत्तीसगढ़ी भी आपको निश्चय ही समझ में आ ही जाएगी.प्रयोग करके देख लें - आपमन के सब्बो रचना ला पढेवं.सुग्घर पारंपरिक तरीका माँ लिखथौ. आज के जमाना मा बहुत कम कवि मन छंद के प्रयोग करथें. दोहा,चौपाई,सवैया,सोरठा,कुंडली लिखे में कवि ला बहुत पीरा अउ तकलीफ उठाना पड़थे .सोना जतिक ज्यादा आगी माँ जरही,वोतकेच निखर आही.तइसने कविता मा होथे. आपके लेखनी ऊपर सरसती माता के किरपा बने रहे ,मोर प्रारथना हे.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,
बहुत सुंदर
थारो राजस्थानी,मोर बर छत्तीसगढ़ी
रोटी तो रोटी रहे.थाली हो सोने मढ़ी.
vaah !!
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