पीड़ पच्चीसी
रजथानी रै राज में , गुणियां रौ औ मोल !
हंस डुसड़का भर मरै , कागा करै किलोळ !!
रजथानी रै खेत नैं , चरै बजारू सांड !
खेत धणी पच पच मरै , मौज करै सठ भांड !!
कांसो किण रौ… कुण भखै ; ज़बर मची रे लूंट !
चूंग रहया रजथान री गाय ; सांडिया ऊंठ !!
महल किणी रो घुस गया कित सूं आ'य लठैत ?
घर आळां पर हर घड़ी फटकारीजै बैंत !!
शरण जकां नैं दी ; हुया बै छाती असवार !
हक़ मांगां आपां जिंयां भिखमंगा लाचार !?
रजथानी गढ आंगणां , रै'गी कैड़ी थोथ ?
राजा परजा सूरमां थकां मांद क्यूं जोत !?
भणिया गुणिया मोकळा बेटां री है भीड़ !
सिमरथ ऐड़ो एक नीं ? मेटै मा री पीड़ !!
पूत करोड़ूं सूरमा राजा गुणी कुबेर !
रजथानी खातर किंयां ओज्यूं सून अंधेर ?!
माता नऊ करोड़ री रो-रो ' करै पुकार !
निवड़्या पूत कपूत का भुजां हुई मुड़दार ?!
समदर उफ़णै काळजै , सींव तोड़ियां काळ !
सुरसत रा बेटां ! करो मा री अबै संभाळ !!
निज भाषा, मा, भोम रौ , जका नीं करै माण !
उण कापुरुषां रौ जलम दुरभागां री खाण !!
जायोड़ा जाणै नहीं जे जननी री झाळ !
उण घर रौ रैवै नहीं रामैयो रिछपाळ !!
निज भाषा रौ गीरबो करतां क्यां री लाज ?
मातभोम , भाषा 'र मा सिरजै सुघड़ समाज !!
मिसरी सूं मीठी जकी…राजस्थानी नांव !
व्हाला भायां, ल्यो अबै निज भाषा री छांव !!
माता नैं मत त्यागजो , त्याग दईजो प्राण !
मा आगै सब धू्ड़ है…धन जोबन अर माण !!
अरे सपूतां ! सीखल्यो माता रौ सन्मान !
मा नैं पूज्यां' पूजसी थांनैं जगत जहान !!
नव निध मा रै नांव में , राखीजो विशवास !
मत बणजो माता थकां और किणी रा दास !!
माता रै चरणां धरो , बेटां ! हस-हस शीश !
खूटै सगळा धन, अखी माता री आशीष !!
मा मूंढै सूं कद करै आवभगत री मांग ?
आदर तो मन सूं हुवै , बाकी ढोंग 'र स्वांग !!
करम वचन मन सूं करो माता रा जस-गान !
रजथानी अपणो धरम , रजथानी ईमान !!
गूंजै कसबां तालुकां ढाण्यां शहर 'र गांव !
भाषा राजस्थान री… राजस्थानी नांव !!
वाणी राजस्थान री जिण री कोनी होड !
होठ उचारै ; काळजां मोद हरख अर कोड !!
उपजै हिवड़ै हेत ; थे बोलो तो इक बार !
राजस्थानी ऊचरयां ' बरसै इमरत धार !!
इमरत रौ समदर भर्'यो , पीवो भर-भर' बूक !
रजथानी है प्रीत री औषध असल अचूक !!
पैलां मा नैं मा गिणां आपां हुय ' दाठीक !
मरुवाणी नैं मानसी औ जग जेज इतीक !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
(c)copyright by : Rajendra Swarnkar
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॥जै रामजी री सा॥
7 टिप्पणियां:
मरु रज आणी आँख में बंद भयी पलकाण.
ढूँढ रहा मैं बापुरा, ऑडियो का किलकाण.
सुणने में जो सुख मिले, पढ़ने में वो नाहीं.
सूरदास आलस्य का, बोल रहा मन माहीं.
# प्रतुल भाई
थांरा सगळा ओळभा , सिर माथै गुणिराज !
धांसी कारण सुर थम्या , मांद पड़ी आवाज !!
अर्थ
गुणीराज ! आपकी सारी शिकायतें सिर माथे पर ।
( लेकिन ) खांसी के कारण ( अभी ) स्वर मद्धम है , सुर थमे हैं ।
प्रतुल जी , आपका हृदय से आभारी हूं …
आप जैसे छंद-काव्य की गहरी समझ रखने वाले विद्वान को ओळ्यूं के प्रथम समर्थनदाता के रूप में पा'कर भी मैं गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूं …
प्रथम पोस्ट पर भी आपके विचारों के लिए आभार स्वीकार करें ।
स्नेह बनाए रहें …
राम राम सा राजेन्द्र भाई
वासी म्हे हाँ रावतसर रा , उदासर स म्हारो गाँव ;
किंकर भी पराया कोणी ,बे ही टीबा,हर बा ही खेजड़ी री छाँव !
थारो घनो आभारी सुं,जिका थारा जीसा लेखक म्हारी भाषा ने आगे नी लेजावन री कोशिश कर रिहा है
थारो ब्लॉग न अनुसरण कारणों ही पडसी.................थारो छोटो
भाई सागर जाजडा
मिश्री सी भाषा जीको राजस्थानी नाम ...
घणी चोखी मारवाड़ी पण आम बोलचाल स्यूं न्यारी ...
कई शब्दां रा अर्थ म्हें राजस्थानी होर भी कोणी जाणा...पर आपकी पोस्ट पढ़ते इसे भी जानने लग जायेंगे ..
माटी री भीनी- भीनी खुशबू !
आपको एवं आपके परिवार को हनुमान जयंती की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।
भाई राजेन्द्र जी ,
भाषा तो ज्यादा समझ में नहीं आयी मगर सुन्दर दोहों का आनंद भरपूर मिला |
लेखनी अबाध चलती रहे ...
bhai rajenraji itani sunder rachanaa ke liye badhaai.
mera blog www.prernaargal.blogspot.com per visit kijiya.aur mere utsahverdhan ke liye comments bhejiya.thanks
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