थांरौ साथो घणो सुहावै सा…

25.7.15

राजस्थानी भाषा राजस्थान मांय पूजीजैला

राजस्थान में दूजै प्रदेशां सूं आ आ'र बस जावण वाळा लोग 
आज राजस्थानी भाषा री मान्यता री संभावना देख'र नाक-भौं सिकोड़ण लाग रैया है ।
उणां नैं ललकारतां फिटकारतां थकां सुरसत चलवाई कवि री कलम

*राजस्थानी भाषा राजस्थान मांय*

आज सुणी... चींट्यां मकड़ां रै नैना पंख निकळ आया ।
बै म्हांरी मा भाषा रै अपमान मं मुंहडो मिचकाया ।।

म्हांरै घर में शरण जका ली... मालिक बणनै री सोचै ।
चक बोढ़ै चीलखड़्यां , म्हांसूं जक्यां गुलगुला ई  बोचै ।।

करै कागला कांचारोळी , कुटिल कमीणा कुचमाद्'यां ।
भाड़ैती भंडेल भचीड़ै , घरघुसिया घूंकै घात्यां ।।

अड़वा लूंट रह्या खेतां नैं , जानी बींद बण्या चावै ।
पकड़' आंगळी पुणचो पकड़ै , गळै गिंद पड़ता जावै ।।

भीतरघात करणिया कपटी लूणहरामी ऐ जबरा ।
म्हांरी रोटी जीम' थाळ रै ठोकर मार रैया नुगरा ।।

म्हारी मा नैं मिळै मानता बै कींकर होवै दोरा ?
अरड़ावै अहसाण भूल' मुस्टंडा ढीठ मुफतखोरा ।।

काळो मुंहडो करो जकां नैं म्हांरी माता दाय नहीं ।
सिंघां सूं डरज्यो बाहरलां ! म्हैं सब धोळी गाय नहीं ।।

गोता दे' काढालां सगळी बादी थां'री झड़ जासी ।
मायड़ रै बेटां सूं टच्चरबाज़ी मूंघी पड़ जासी ।।

आयोड़ा हो... महमानां ज्यूं आपै मांहीं थे रहज्यो ।
भिष्ट माजणो कर देवांला पछै न कीं म्हांनैं कहज्यो ।।

मरुमाटी रा म्हैं मालिक ; औकात थांरली थे जाणो।
मोठां री छींयां में बैठो , करो मजूरी , गुण मानो ।।

सूगलवाड़ करण री मत सोचो धींगड़ धाप्यां-धायां !
घिरत-चूरमो टांग पसार्'यां म्हांरै आंगण थे खाया ।।

मिजमानी करणी जाणां तो कंठ मोसणो भी आवै ।
म्हांसूं राड़ करणिया म्हां साम्हीं ज्यादा नीं टिक पावै ।।

आज मानता म्हांरी मा भाषा पावै... जैकार करो !
उठै मरोड़ा पेट मांय तो जावो , अळगा जाय मरो !!

है डंकै री चोट... सैंग ऐलान म्हांरलो सुण लीजो !
म्हांरी राजस्थानी पर औसाप न किरियावर कीजो ।।

निभा दिया म्हैं रिश्ता सूं बत्ता भाईपा धरमेला ।
राजस्थानी भाषा राजस्थान मांय पूजीजैला !!
©राजेन्द्र स्वर्णकार 
घणीखम्मा

12.5.14

जग खांडो , अर ढाल है मा !

मा ई मिंदर री मूरत

जग खांडो , अर ढाल है मा !
टाबर री रिछपाळ है मा !
जायोड़ां पर आयोड़ी
विपतां पर ज्यूं काळ है मा !
दुख-दरियाव उफणतो ; जग
वाळां आडी पाळ है मा !
मैण जिस्यो हिरदै कंवळो
फळ-फूलां री डाळ  है मा !
जग बेसुरियो बिन थारै
तूं लय अर सुर-ताल है मा !
बिरमा लाख कमाल कियो
सैंस्यूं गजब कमाल है मा !
लिछमी सुरसत अर दुरगा 
था'रा रूप विशाल है मा !
मा ई मिंदर री मूरत
अर पूजा रौ थाळ है मा ! 
जिण काळजियां तूं नीं ; बै
लूंठा निध कंगाल है मा !
न्याल ; जका मन सूं पूछै
- था'रो कांईं हाल है मा !
धन कुणसो था'सूं बधको ?
निरधन री टकसाल है मा !
राजेन्दर था'रै कारण 
आछो मालामाल है मा !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

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मां पर लिखी मेरी राजस्थानी ग़ज़ल के भावों तक आप अवश्य ही पहुंच पाए हैं , 
कुछ और गहराई से रचना की आत्मा का स्पर्श कर पाएं , 
इसलिए कठिन शब्दों के अर्थ प्रस्तुत हैं - 

खांडो = खड़्ग/ तलवार
रिछपाळ = रक्षक
विपतां = विपदाएं 
काळ = काल 
वाळां आडी पाळ = बाढ़ से उफनते नालों के लिए अस्थायी बांध
मैण = मोम 
हिरदै = हृदय 
कंवळो = कोमल
सैंस्यूं गजब = सबसे अद्भुत 
जिण काळजियां तूं नीं = जिन कलेजों में तू नहीं है
लूंठा निध = (वे)धनवान बेटे
न्याल = धन्य धन्य
था'रो कांईं हाल है मा != तुम्हारा क्या हाल है मां !
कुणसो = कौनसा 
बधको = बढ़कर
निरधन री टकसाल = निर्धन बेटे की टकसाल
था'रै कारण = तुम्हारे कारण 
आछो मालामाल = अच्छा मालदार
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राम राम सा