थांरौ साथो घणो सुहावै सा…

28.6.12

संतरै री फांक ज्यूं रस छळकता थारा अधर


साथीड़ां ! घणीखमा !
लारला दिनां घणो अळूझ्योड़ो होवणै रै कारण
अर कीं नेट री बीजी समस्यावां कारण
नूंवी पोस्ट लगावण में इत्ती ढील हुयगी ।
अबै घणी उडीक करायां बिना
आपरी निजर है सा म्हारी आ रचना
गोरड़ी गजगामणी बिलमावणी तड़पावणी

कंवळ ज्यूं सरवर में शोभित ओपता थारा अधर
दो गुलाबी पांखड़्यां ज्यूं फुरकता  थारा अधर

 देह थारी फूठरी घड़दी विधाता चाव सूं
कनक केशर कोरणी सूं कोरिया थारा अधर

 मेनका अर उर्वशी पाणी भरै तूं है इस्यी
निरख' डोलै इंद्र-आसण ; अप्सरा थारा अधर

 डील सूं चोवै अमी , सौरम पवन में रसमसै
सुर सजै ब्रह्मांड... हवळै-सी हिला थारा अधर

 उफणतो जोबन ; रसालां ठांव में मावै नहीं
संतरै री फांक ज्यूं रस छळकता थारा अधर

नैण कटि जंघा पयोधर सै नशै रा ठाण है
काम रींझावै जगावै सौ नशा थारा अधर

 गोरड़ी गजगामणी बिलमावणी तड़पावणी
न्याल कर राजिंद-अधरां सूं मिला थारा अधर

-राजेन्द्र स्वर्णकार
©copyright by : Rajendra Swarnkar

शब्दार्थ
कंवळ ज्यूं सरवर में शोभित ओपता थारा अधर = जैसे सरोवर में कमल शोभित है (वैसे ही तुम्हारे चेहरे पर ) शोभायमान तुम्हारे होंठ
पांखड़्यां ज्यूं फुरकता = कोमल पंखुरियों की तरह (हवा के झौंके मात्र से) कंपित
फूठरी = सुंदर  
चाव सूं = रुचि पूर्वक
कोरणी = कूची / कलम / चित्रकारी का ब्रश
कोरिया = चित्रित किये
है इस्यी = ऐसी है
डील सूं चोवै अमी = देह से अमृत चू’ता है
सौरम = सुगंध
रसमसै = रसमस / एकाकार होती / घुल जाती है
हवळै-सी = हौले-से
उफणतो जोबन ; रसालां ठांव में मावै नहीं = उफनता हुआ यौवन ऐसा कि रसीले फल पात्र में नहीं समा पा रहे 


…एक और बात ई आपसूं करणी है…
म्हारी हिन्दी अर राजस्थानी री पूरी री पूरी रचनावां अर रचनावां रा अंश नेट पर लोग बिना म्हारौ नाम लिख्यां आपरै लेखां में अर कमेंटां में अर फेसबुक रै केई समूहां (groups) में ठसकै सूं काम लेवता लाध्या है । पूछ्यां सूं केई जणा तो जवाब ई कोनीं दिया , केई गळती मानी , केई उलटो किरियावर / एहसान जतावता उथळो दियो कै मुफ़त में थां’रौ प्रचार करां …
ख़ैर , आप रा किया आप पासी ।
म्हारा हेताळू-भलचावू साथ्यां सूं अरज है कै 
म्हारी रचनावां रै ‘मिसयूज’ री 
आपनैं भणक पड़ै जद म्हनैं ज़रूर बतावाजो सा ।

मोकळी मंगळकामनावां !
प्रीत के तरही मुशायरे में
राजेन्द्र स्‍वर्णकार की ग़ज़ल

15 टिप्‍पणियां:

Jitendra Dave ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना. यह सजीव पढ़ते-पढ़ते ही हमारे सामने शब्द चित्र उभर जाता है. लाबो की लाजवाब व्याख्या...नशीली, मादक..!

सदा ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ... आभार

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत सुन्दर...
:-)

Rajasthani Vaata ने कहा…

sada ri naai ad-bhut !!

virendra sharma ने कहा…

सुन्दरम मनोहरं .नख शिख वर्रण में आपका सानी नहीं कोई भाई सा ....
वीरुभाई .
शुक्रवार, 29 जून 2012
ज्यादा देर आन लाइन रहना माने टेक्नो ब्रेन बर्न आउट
http://veerubhai1947.blogspot.com/
वीरुभाई ४३.३०९ ,सिल्वर वुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन ,४८,१८८ ,यू एस ए .

shyam gupta ने कहा…

वाह ! क्या कहने ..
---अधरां सूं अधरां मिल्या के कोनी ...

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

क्या बात है राजेन्द्र जी!! बहुत सुन्दर .

कल्पना लोक प्रकाशन ने कहा…

वाह सा राजेंद्र जी सिंणगार रो जबरजंग चित्राम कोर दियो!

कल्पना लोक प्रकाशन ने कहा…

वाह सा राजेंद्र जी सिंणगार रो जबरजंग चित्राम कोर दियो सा

Shanti Garg ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग

जीवन विचार
पर आपका हार्दिक स्वागत है।

Sanju ने कहा…

Very nice post.....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.

Unknown ने कहा…

Bagut hi achhi rachna\
\\\


please visit us \
ukh


www.sukhdevkarun.blogspot.com

Unknown ने कहा…

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Rajput ने कहा…

आपकी राजस्थानी रचना का जवाब नहीं सर जी , मुझे कम आती है लेकिन पता नहीं कैसे आपकी रचना पूरी समझ मे आ जाती है ।

Dr Vijay Soni ने कहा…

आपकी रचनाओ की गहराई एवं सुंदरता बया करने के लिए मेरे पास प्रयाप्त सब्द नही है..